कोरोना काल में लोन मोराटोरियम की सुविधा लेने के मामले में कॉरपोरेट और रिटेल कर्जधारक के अलावा किसान भी पीछे नहीं हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा के आंकड़ों के मुताबिक जून महीने तक कुल 74 पर्सेंट किसान कर्जधारक ऐसे थे, जिन्होंने लोन मोराटोरियम के तहत कर्ज की किस्तों को अदा न करने की छूट ली है। इनमें से बड़ी रकम किसान क्रेडिट कार्ड पर लिए गए कर्ज की है। बैंकों का कृषि एवं उससे जुड़े क्षेत्रों पर कुल 22 लाख करोड़ रुपये का लोन बकाया है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुताबिक रकम के हिसाब से देखें तो उसकी ओर से जारी किए गए लोन पर मोराटोरियम लेने के मामले में किसान दूसरे नंबर पर हैं। कॉरपोरेट सेक्टर ने कुल 70,000 करोड़ रुपये के लोन पर मोराटोरियम की सुविधा ली है, जबकि किसानों ने 60,000 करोड़ रुपये के लोन की किस्तों को रोकने का फैसला लिया है।
बैंक का कहना है कि कृषि से जुड़े कर्जधारकों के लोन मोराटोरियम लेने का स्ट्राइक रेट बेहद ऊंचा है। यदि पर्सेंट के हिसाब के देखें तो कॉरपोरेट सेक्टर के 30 फीसदी कर्जधारकों ने लोन की किस्तें रोकी हैं, जबकि कृषि सेक्टर के 74 फीसदी कर्जधारकों ने यह सुविधा ली है। एक्सपर्ट्स का कहना है बैंक ऑफ बड़ौदा जैसी ही स्थिति अन्य बैंकों की भी है, जिन्होंने सरकारी लक्ष्यों के मुताबिक बड़े पैमाने पर कृषि सेक्टर में लोन बांटे हैं। यही नहीं जानकारों का कहना है कि इससे भविष्य में लोन डिफॉल्ट की आशंका बढ़ गई है। फिलहाल एग्रीकल्चर लोन पर किसी तरह की रिस्ट्रक्चरिंग की सुविधा का ऐलान नहीं किया गया है।
बैंक पहले ही कृषि सेक्टर के कर्जों के बड़े एनपीए के बोझ से दबे हुए हैं। उदाहरण के तौर पर देखें तो बीते तीन सालों में एसबीआई की ओर से बांटे गए कृषि लोन के एनपीए होने की संख्या तीन गुनी हो गई है। भारतीय स्टेट बैंक ने करीब 2 लाख करोड़ रुपये की रकम कृषि कर्ज के तौर पर बांटी है। कृषि सेक्टर के लोन का एनपीए 2016-17 में 5 पर्सेंट ही था, जो सितंबर 2019 में बढ़कर 14 पर्सेंट तक पहुंच गया। बैंक ऑफ इंडिया का एनपीए 17 पर्सेंट है, जबकि आईडीबीआई बैंक का एनपीए 15 फीसदी है। साफ है कि कोरोना काल में सरकारी बैंकों का यह एनपीए और बढ़ने वाला है।
हालांकि बैंकों के एनपीए में बड़ा आंकड़ा सरकारों की ओर से कर्जमाफी किए जाने का भी है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत करीब 10 ऐसे राज्य हैं, जहां चुनाव के बाद सरकारों ने किसानों के कर्जों को माफ करने का फैसला लिया था। हाल ही में एसबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि कर्जमाफी के फैसलों के चलते अनुशासन में कमी दिखती है। इसकी वजह से लोग कर्ज ले लेते हैं और फिर माफी के इंतजार में उसे नहीं चुकाते।