देश के 42 कमर्शियल बैंकों ने वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान कुल 2.12 ट्रिलियन रुपये का लोन राइट ऑफ किया है। यह जानकारी वित्त मंत्रालय की तरफ से संसद में दी गई। राइट ऑफ की गई लोन की यह राशि पिछले साल की तुलना में 42 फीसदी अधिक है।
पिछले वित्त वर्ष में 1.5 ट्रिलियन रुपये का लोन राइट ऑफ किया गया था। इसके अलावा इसमें 20 फीसदी नॉन परफॉर्मिंग असेट्स (NPA) भी शामिल था। बैंक सामान्य रूप से अपनी बैलेंस शीट को क्लियर रखने के लिए उसमें से एनपीए को राइट ऑफ कर देते हैं। इससे एक तरफ जहां बैंक की देनदारियों में कमी होती हैं वहीं संभावित नुकसान भी खातों से हट जाता है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार साल 2014-15 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से भारतीय बैंक अपने करीब 5.7 ट्रिलियन रुपये के बैड लोन को राइट ऑफ कर चुके हैं। अब तक देश के सार्वजनिक क्षेत्र के 21 बैंक अपने खातों से बैड लोन को राइट ऑफ कर चुके हैं।
खबर के अनुसार साल 2018-19 में इन बैंकों ने 1.9 ट्रिलियन रुपये का बैड लोन राइटऑफ किया है। यह कुल बैंकों की रकम का 90 फीसदी है। खबर है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सबसे अधिक 56500 करोड़ रुपये का लोन राइट ऑफ किया है। पिछले कुछ वित्तीय वर्ष में कई बैंकों के विलय के बाद एसबीआई को लोन राइट ऑफ में काफी बढ़ोतरी हुई है।
पिछले चार साल में बैंकों के खातों में बैड लोन की राशि तीन गुना बढ़ चुकी है। साल 2014-15 में यह राशि 3.2 ट्रिलियन रुपये थी जो 2018-19 में 9.4 ट्रिलियन रुपये पहुंच गई। लोन को राइट ऑफ करने का मतलब है कि जो लोन वसूला नहीं जा सकता उसे बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है। इसका उद्देश्य बैलेंस शीट को ठीक रखना होता है।
तकनीकी रूप से लोन की राशि भले ही खाते में न दिखाई दे लेकिन इसकी वसूली की प्रक्रिया रुकती नहीं है। यानि की भविष्य में यह पैसा मिलने की उम्मीद बनी रहती है। इसके साथ ही इस राशि को वसूल करने के लिए बैंक के पास कानूनी कार्रवाई का विकल्प खुला होता है।
बैंक कानूनी तरीके से राइट ऑफ किए गए कर्ज की वसूली के लिए स्वतंत्र रहता है। यदि राइट ऑफ किया गया लोन की रिकवरी हो जाती है तो संबंधित वित्त वर्ष की बैलेंस शीट में उसे लाभ के रूप में दर्शाया जाता है।
