मयंक दीक्षित
यूं तो ग्रेटर नोएडा की पहचान अंग्रेजी नामों पर बनी बहुमंजिला इमारतें हैं, लेकिन यहां के बिसरख गांव का पौराणिक महत्व भी है। कहा जाता है कि इस गांव में रावण का जन्म हुआ था। माना जाता है कि रावण के पिता विश्रवा ऋषि के नाम पर ही गांव का नाम ‘बिसरख’ पड़ा। सोने की लंका में शासन करने वाले रावण की जन्मभूमि में विकास का ‘दहन’ हो चुका है! मंदिर जाने के लिए सड़क के नाम पर धूल भरी गली है, जो बरसात में नो ‘एंट्री जोन’ हो जाती है। मंदिर के महंत रामदास बताते हैं कि शायद ‘रावण की जन्मभूमि’ होने के चलते सरकार यहां काम कराने से कतराती है, जबकि ये गांव श्रीराम का भी परमभक्त है।
घरों में खीर-पूड़ी और ‘शोक’
‘शिव मंदिर’ के महंत रामदास बताते हैं कि बिसरख गांव में दशहरे के दिन सूनापन रहता है। नई पीढ़ी भले ही आगे बढ़ गई हो लेकिन यहां के पुराने लोग शोक मनाते हैं। घरों में खीर-पूड़ी का भोज किया जाता है। आम दिनों की तरह मंदिर में चहल-पहल ना के बराबर ही होती है। महंत का कहना है कि रावण इस गांव का बेटा था और है, इसलिए लोग उसका पुतला फूंकना तो दूर, ये सब देखकर भी दुखी हो जाते हैं।

फूलन देवी ने संवारी थी सूरत
कहा जाता है कि विश्रवा ऋषि (रावण के पिता) ने यहां मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। पूर्व में डाकू से राजनीति में आने वालीं फूलन देवी ने मंदिर में बाउंड्री आदि का काम करवाया था। महंत रामदास बताते हैं कि बिना सरकारी मदद के वे गांववालों के साथ मिलकर यहां की देखरेख करते हैं. मंदिर परिसर 2 एकड़ में फैला है। यहां गौशाला भी है, जहां 50-60 गायें रहती हैं। महंत का कहना है कि गौशाला और गायों की बेहतरी के लिए सरकार से गुहार लगाते रहे हैं।
अनहोनी की अफवाहें
महंत रामदास ने बताया कि लोगों ने कहानियां बना दीं कि यहां जिसने भी रावण दहन किया, उसके साथ बुरा हुआ. उन्होंने कहा कि लोगों ने रावण और उसके गांव को बदनाम करने के लिए कहा कि यहां राम बोलने पर झगड़े हो जाते हैं, जो कि अफवाह है. महंत बताते हैं कि मैं करीब 35 सालों से रावण की जन्मभूमि पर हूं, यहां राम तो पूज्यनीय हैं ही, साथ ही रावण का भी सम्मान है. उनके मुताबिक, यहां 35-40 सालों से न तो रामलीला का आयोजन हुआ, न ही रावण दहन किया गया।
गांववालों को ‘गर्व’
बिसरख के बड़े व्यवसायी रूप सिंह बताते हैं कि गांव में दशहरे का आयोजन भले ही दूसरी जगहों जैसा न हो लेकिन गांव में खुशहाली है। वह बताते हैं कि गांव में खाली जमीनों पर कभी किसी ने रामलीला या रावण दहन जैसे आयोजन के लिए संपर्क नहीं किया. बिसरख रावण का गांव है लेकिन यहां वैमनस्य, राम के प्रति किसी तरह का द्वेष नहीं है. यहां लोगों को मलाल है तो बस इस बात का कि सरकार इसे मान्यता के साथ-साथ पहचान दे और सोने की लंका वाले रावण के गांव में पुष्पक विमान न सही, अपने वाहन से लोग सकुशल पहुंच सकें। (लेखक मीडियाकर्मी के तौर पर कार्यरत हैं और ये उनके निजी विचार हैं)
