समूचा विश्‍व हिंसा की अभूतपूर्व पकड़ में है। कोई भी सही तरह से इसकी वजह नहीं समझ पाता, लेकिन बिना वजह किसी बात का इतना ज्‍यादा प्रभाव भी नहीं हो सकता। इतिहास में कभी भी मानव जाति ने अपना अस्तित्‍व बचाए रखने का इतना गहरा संकट कभी नहीं देखा। धर्म, जाति, पंथ, राष्‍ट्रीयता को पीछे छोड़ पूरी मानव जाति का 99 फीसदी हिस्‍सा हिंसा के इस पागलपन के खिलाफ है। सिर्फ एक फीसदी मुमराह किए गए लोग, जिनकी संख्‍या बढ़ती ही जा रही है, मानवता के लिए खतरा बन गए हैं। दुनिया की कोई भी जगह सुरक्षित नहीं बची, यहां तक कि अब हमारे अपने घर की चारदीवारी भी डराने लगी है। कोई नहीं जानता कि कब कोई गोली, ग्रेनेड या बम कहां से आ जाएगा और मासूम बच्‍चों के साथ कई निर्दोष लोग मारे जाएंगे।

किसी को हल का पता नहीं है। संयुक्‍त राष्‍ट्र जैसी संस्‍थाओं तक को नहीं समझ आ रहा कि इसे कैसे सुलझाया जाए। जैसा कि गांधी और किताबें हमें बताती हैं, हिंसा के बीज दिमाग में पहले ही बो दिए जाते हैं,  जो बाद में जंगली पेड़ बन जाते हैं और ऐसी हिंसा का जहरीला फल देते हैं जो जंगल में आग की तरफ फैल जाता है। युवा‍ओं का दिमाग हिंसा के इन बीजों को बोने के लिए मुफीद बन गया है। हिंसा के ये बीज किसी जानलेवा वायरस की तरह तेजी से बढ़ते चले जा रहे हैं। इससे कुछ सवाल जेहन में आते हैं-

1. ये कौन लोग हैं?

2. ये लोग जाति, धर्म, पंथ, देश देखे बिना निर्दोष लोगों को मार कर क्‍या हासिल करना चाहते हैं?

3. हम इसका हल कैसे निकालें?

4. क्‍या ऐसा चुनिंदा लोगों के हाथ में अकूत संपत्ति होने की वजह से है?

5. क्‍या इसकी वजह बेराेजगारी है?

6. क्‍या ऐसा इसलिए है क्‍योंकि ज्यादातर लोग विश्‍वस्‍तरीय स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं और शिक्षा से महरूम हैं?

7. क्‍या इसकी वजह ये है कि न्‍यायिक/राजनैतिक तंत्र कुछ हद तक पक्षपाती है और अमीरों और राजनैतिक रूप से सशक्‍त लोगों का साथ देता है?

8. या फिर यह वर्ल्‍ड ऑर्डर के खिलाफ बदला है, जिसने तकनीकी रूप से तो लोगों को जोड़ा है, मगर भावनात्‍मक रूप से बांट दिया है?

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फ्रांस के पेरिस में आतंकी हमले के दौरान गोली लगने से टूटा कांच। (Source: Associated Press)

समय की मांग यह है कि नफरत फैलाने के मकसद वाले कुछ लोगों के जाल में फंसने की बजाय, मानव के मूल स्‍वभाव की तरफ लौटा जाए। जिसमें प्‍यार है, जुनून है, दया है और इंसानों की परवाह है। गोली का जवाब कभी गोली से नहीं दिया जा सकता। नफरत का जवाब नफरत से देने पर सिर्फ सबके लिए नफरत ही पैदा होगी। चलिए वापस गांधी, नेल्‍सन, मंडेला, मार्टिन लूथर किंग, कबीर, तुलसीदास, नरसिंह मेहता, संत तुकाराम… की तरफ चलते हैं और सोचें कि ‘वैष्‍णव जन तो तेने रे कहि जे पीर पराई जाणे रे।’ आइए समझें और दूसरों का दर्द महसूस करने की कोशिश करें। चलिए, हिंसा के बीजों को प्‍यार और परवरिश से भर दें। चलो दुनिया को खुशी और आनंद की जगह बनाएंं जो कि असल में यही है।

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फ्रांस में हमले के बाद आतंकियों को फ्रेंच नागरिकों का साफ संदेश। (Source: Associated Press)

सवाल यही है कि हम इसे करें कैसे?

वह भी ऐसे वक्‍त में जब दुनिया में कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे हम एक रोल मॉडल मान सकें। राजनीतिक बहस बेहद घटिया और नकरात्‍मक हो चली है, मीडिया की दुनिया के पास भी कुछ सकरात्‍मक दिखाने को नहीं है। ऐसे में यह सिर्फ विचारों के आदान-प्रदान से ही हो सकता है, यह एक ऐसा अांदोलन होगा जो समूचे विश्‍व को बांटने की बजाय जोड़ेगा। शायद हिंसा मुक्‍त विश्‍व बनाने में हमें काफी लंबा समय लगे, लेकिन हमें शुरुआत करने की जरूरत है। हमें फिर से शांति और अहिंसा को पूरी दुनिया में फिर से फैलाने की जरूरत है। चूंकि हमारा मूल सिद्धांत ही अहिंसा है तो इस आंदोलन की शुरुआत करने के लिए भारत से बेहतर जगह क्‍या होगा। मुझे पूरा विश्‍वास है कि ऐसा जल्‍द होगा।

नोट: लेखक ऑल इंडिया तृणमूल पार्टी से लोकसभा सांसद हैं एवं पूर्व रेल मंत्री रहे हैं। लेख में व्‍यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के निजी विचार हैं, जिनके लिए Jansatta,com किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।