कौन सोच सकता है कि कॉपीराइट के मुद्दे पर परिवार बंट जाएंगे. लेकिन जर्मनी में ऐसा ही हुआ है. यूरोप के दूसरे देशों में भी ऐसा हो रहा है. मां-बाप की पीढ़ी कॉपीराइट का समर्थन कर रही है, बच्चों की पीढ़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाह रही है. दोनों एक दूसरे को समझ नहीं रहे हैं. बच्चे यूरोपीय संघ के कॉपीराइट कानून के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं. कानून में बदलाव की पहल यूरोपीय संघ के आयोग ने दो साल पहले की थी. इसका घोषित लक्ष्य यूरोपीय संघ की सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा है. इसके अलावा प्रकाशकों और कलाकारों को यूट्यूब जैसे वेब महाबलियों से उचित मुआवजा दिलवाना भी है. लेकिन यूरोप के लोग पीढ़ियों में बंट गए हैं. रविवार को पूरे यूरोप में प्रस्तावित यूरोपीय कॉपीराइट कानून के खिलाफ प्रदर्शन हुए. आखिर मामला क्या है.
पहली नजर में मामला आसान नजर आता है. इंटरनेट में सब कुछ उपलब्ध है, सोशल मीडिया पर किसी कॉपीराइट की परवाह नहीं की जा रही. लेखकों और रचनाकारों की शिकायत है कि उन्हें उनके काम का मेहनताना नहीं मिल रहा. प्रस्ताव वेब कॉपीराइट कानून गूगल और दूसरे इंटरनेट प्लेटफॉर्म को बाध्य कर देगा कि वे संगीतकारों, लेखकों और पत्रकारों के साथ लाइसेंस संबंधी करार करें. तभी उनकी रचनाओं का इस्तेमाल कर पाएंगे. नए कॉपीराइट कानून का मकसद है कि इंटरनेट पर जिस किसी की भी रचना का इस्तेमाल हो उसे उसके लिए मेहनताना मिले. इसमें किसी को कोई समस्या भी नहीं होनी चाहिए. कौन नहीं चाहेगा कि लोगों को उनका हक मिले. लेकिन नई पीढ़ी की समस्या इस कानून को लागू करने को लेकर है.
नए कॉपीराइट कानून का मतलब ये होगा कि इंटरनेट प्लेटफॉर्मों को अपने यहां के कंटेंट की जिम्मेदारी लेनी होगी और देखना होगा कि वहां यूजर अवैध कंटेट अपलोड न करें. इस कानून को लागू करने के लिए एक फिल्टर की जरूरत होगी. आलोचकों का कहना है कि फिल्टर महंगे हैं. छोटे प्लेटफॉर्मों के लिए यह खर्च करना संभव नहीं होगा और वे वेब महाबलियों के गुलाम बन जाएंगे. सोशल मीडिया वाली नई पीढ़ी को ये डर भी है कि फिल्टर रचना और उद्धरण में फर्क नहीं कर पाएगा, इससे इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को धक्का लगेगा. इंटरनेट पर बहुलता खत्म हो जाएगी. पिछले सालों में मजाक और हास्य की जो परंपरा इंटरनेट पर विकसित हुई है वह भी खत्म हो जाएगी. मंगलवार को यूरोपीय संसद में नए कानून पर फैसला होना है. अबतक तय लग रहा था कि कानून पास हो जाएगा, लेकिन रविवार को प्रदर्शन के बाद किसी को पता नहीं कि सांसद क्या फैसला लेंगे. इसने विवाद को और तीखा बना दिया है.
संसद में फैसले से पहले विवाद ने भद्दा रुख भी ले लिया है. नए कानून के समर्थकों और आलोचकों में भी तकरार हो रही है. समर्थकों ने वेब पर चल रहे विरोध को बॉट द्वारा चलाया जा रहा विरोध बताया तो विरोधियों ने सड़क पर उतर कर जवाब दिया कि हम बॉट नहीं हैं. वीकएंड में हुए प्रदर्शनों में जर्मनी में भी 100,000 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए पहले कभी इतने लोग सड़कों पर नहीं उतरे. बहुत से किशोर पहली बार प्रदर्शन कर रहे थे. एक ने नारा लिख रखा था, “ आओ पहले तुम्हें इंटरनेट समझाएं, इससे पहले कि उसे खत्म कर दो.“
जर्मनी में इस मुद्दे पर सरकार भी बंट गई है. नए कानून के पीछे सांसद आक्सेल फॉस हैं जो चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के हैं. इसके विपरीत मैर्केल की साझा सरकार में शामिल एसपीडी भी अपलोड फिल्टर के खिलाफ है. यूरोपीय कानून के पास हो जाने की स्थिति में जर्मनी को अपलोड फिल्टर के बिना कानून को लागू करने का रास्ता निकालना होगा. सबसे ज्यादा विरोध भी इस फिल्टर को लेकर ही है. यूरोपीय संसद में बहस के दौरान कानून में संशोधन के प्रस्ताव आने की उम्मीद है. लेकिन पीढ़ियों का जो विवाद वेब कॉपीराइट के मामले में सामने आया है, उसके इतनी जल्दी खत्म होने की उम्मीद नहीं.