बॉलीवुड के ‘किंग खान’ शाहरुख खान झुक गए हैं। आने वाली फिल्म रईस में ‘मियां भाई की डेयरिंग’ दिखाने के लिए शाहरुख को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे से मिलना पड़ा। कहना पड़ा कि उन्होंने अपनी फिल्म में पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान को इस बार ले लिया, पर आगे से किसी पाकिस्तानी कलाकार के साथ काम नहीं करेंगे, ऐसी कसम भी खाई। क्याें भाई? अगर आप सिनमाई पर्दे पर ऐसे नायक की छवि गढ़ते हैं जो किसी की धमकी के आगे नहीं झुकता, सच का साथ देता है और आखिर में राजी-खुशी जीत भी हासिल करता है। तो असल जिंदगी में आप दर्शकों (जो फिलहाल पाठक भी हैं) को कैसे नायकत्व का एहसास करा पाएंगे, धमकी से घबराकर? उनसे अपनी फिल्म की रिलीज में हंगामा न करने की अपील और पाकिस्तानी कलाकारों के बायकॉट की कसम खाकर आप फिल्म अभिनेताओं की बड़ी कमजोर इमेज दर्शकों के सामने रख रहे हैं।
जब फवाद खान के ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में होने पर विवाद मचा तो महाराष्ट्र सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था। तब भी बॉलीवुड निर्माता धमकियों के आगे झुक गए थे और तय हुआ था कि पाकिस्तानी कलाकारों वाली हर फिल्म के निर्माता को रिलीज के लिए सेना को पांच करोड़ रुपए दान देने होंगे। जबकि फिल्म में फवाद की भूमिका बमुश्किल कुछ मिनट की थी। उसके बाद रिलीज हुई शाहरुख की ही ‘डियर जिंदगी’ में पाकिस्तानी गायक-अभिनेता अली जफर का अच्छा-खासा रोल था, तो कोई विवाद नहीं हुआ और फिल्म आसानी से ‘हिट’ हो गई। तब न तो राज ठाकरे की पार्टी राष्ट्रभक्ति का ककहरा सिखाने उतरी, न ही तथाकथित देशभक्तों का खून खौला। अब अचानक से इस मुद्दे को हवा देने का आखिर क्या मतलब है?
असल समस्या यह है कि हम वक्त और जरूरत के हिसाब से ‘राष्ट्रभक्ति’ करने लगे हैं। जब, जहां फायदा दिखता है, हम देशभक्ति का झंडा उठा लेते हैं और फायदा होने के बाद चुप मारकर बैठ जाते हैं। दो महीने पहले राष्ट्रभक्ति का शोर ऐसा था कि पाकिस्तानी कलाकारों के बैन के अलावा दूसरा मुद्दा नहीं रह गया था देश में, बीच में नोटबंदी ने इस माहौल को हल्का किया।
शाहरुख के ‘झुक’ जाने से गौण हुई ‘राष्ट्रभक्ति’ को नई चेतना मिली है। मगर देश में बढ़ते उत्पात पर लगाम लगाने की जगह उसे समाज का हिस्सा बनाने की यह प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है। बेहतर होता अगर शाहरुख मियां भाई के अंदाज में अपनी फिल्म रिलीज कराते, विरोध होता तो सरकार से मदद मांगते, न कि धमकी देने वालों के आगे झुककर बचते हुए निकल जाते। ‘हीरो’ ऐसा नहीं करते।

