इजरायल डिफेंस फोर्स में यह परंपरा है कि फोर्स छोड़ने के बाद सैनिक ‘शांति’ पाने के लिए भारत आते हैं। इजरायल के एक टैंक कमांडर ने भारत में बिताए गए दिनों पर एक आर्टिकल लिखा है, जो इंटरनेट पर वायरल हो रहा है। शैलेव पालर नाम के इस सैनिक ने 2014 के गाजा युद्ध में हिस्‍सा लिया था। वह ‘3 साल तक हर सुबह किसी असाइनमेंट पर होने और इस अनिश्चितता में जीते हुए कि अगली बार पता नहीं कब घर लौटेगा’ के बाद अपनी जिंदगी पर दोबारा काबू पाने के बारे में लिखते हैं। इंटरनेट पर पालर का यह लेख तेजी से मशहूर हो रहा है। अब तक इसे करीब 23 हजार लोग शेयर कर चुके हैं।

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इजरायल डिफेंस सर्विस में काम करते वक्‍त इजरायल-इजिप्‍ट बॉर्डर पर शैलेव पालर। (Source: Shalev Paller)

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पालर 2014 में तीन साल की सैन्‍य सेवा के बाद भारत आए। उन्‍होंने अपने लेख में लिखा है, ”सेना में रहते हुए जब मुझसे घरवाले पूछते कि मुझे कैसा लगता है तो मैं सिर्फ कुछ बातें ही याद कर पाता था, वे भी जंग से जुड़ी। मैंने भारत घूमने का फैसला इसलिए किया क्‍योंकि मैं जानना चाहता था कि मैं खुद पर क्‍या बोझ लेकर चल रहा था, इस उम्‍मीद में कि मैं उससे छुटकारा पा सकूंगा। मैंने सुना था कि यहां का खाना बहुत स्‍वादिष्‍ट होता है। मैं जब पहली बार भारत आया तो खुद को पुरानी दिल्‍ली के एक व्‍यस्‍त बाजार में खड़ा पाया। सबकुछ नया-नया था। एक पूरी सड़क किताबों के ढ़ेर से पटी पड़ी थी। एक छोटी गली जिससे गुजर पाना भी मुश्किल था, छह सदस्‍यों का एक परिवार एक ही मोटरबाइक पर बैठकर जाता दिखा।” पालर ने अपने लेख में दिल्‍ली के सबसे मशहूर चाय की दुकान के मालिक ‘चाचा’ का जिक्र किया है।

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पालर ने नुब्रा घाटी के बच्‍चों को जादू की एक कला भी दिखाई। (Courtesy: Shalev Paller)

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पालर ने भारतीयों के मिलनसार स्‍वभाव की खूब तारीफ की है। ऋषिकेश में एक जगह उनकी बस खराब हो गई तो वे लिखते हैं, ”ड्राइवर से बहस करने की बजाय सब बस से उतरे और सड़क के किनारे बैठ गए। चाय बनाई, पी और इंतजार करते रहे। घंटों ऐसे ही बीत गए। सूरज ढलने को आया मगर कई परिवार, दोस्‍त और अजनबी ऐसे बात कर रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं। मैं सोचता रहा कि अपने देश में ऐसा कभी नहीं हुआ। जब समय को इतना कम महत्‍व दिया जाता है, तो वह विशेष हो जाता है।” पालर आगे लिखते हैं, ”और ऐसे ही चलता रहा। हर जगह एक नया चेहरा, एक नई कहानी। मैं एक रजवासा मोची के साथ गली के कोने पर बैठा जो अपनी मां का सिखाया गाना गा रहा था। मैं एक हिंदू थियेटर में गया जहां दो सौ स्‍थानीय नागरिक फिल्‍म में बाप-बेटी के मिलने पर खुशी से चीख रहे थे। मैं गर्म खाने और गर्म मौसम का आदी हो गया और मैंने जिंदगी की प्‍यास को फिर से खोज लिया जिसे मैंने कुछ देर के लिए कहीं खो दिया था।

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पालर ने लेह के रजवासा (मोची) के साथ भी वक्‍त बिताया। (Courtesy: Shalev Paller)

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पालर जब घर लौटे तो उन्‍होंने अपना अनुभव लिखने का फैसला किया। अपने लेख के अंत में वे लिखते हैं, ”जब मैं घर लौटा तो सबने मुझे गले से लगा दिया। मुझसे फिर पूछा गया कि मुझे कैसे लगा। और इस बार मेरे पास ढेरों तस्‍वीरें थीं, गर्माहट की, दोस्‍ती की, खूबसूरती की, हंसी की, इंसानियत की और प्‍यार की।