डागर घराने की धरोहर सहेजने के साथ ही उस्ताद इमामुद्दीन खां डागर इंडियन म्यूजिक आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी अपने अभिलेखागार ‘द डागर आर्काइव्स’ के लिए समय-समय पर संगीत जगत के अन्य विद्वानों का भी ध्वन्यंकन करती है। जयपुर स्थित यह संस्था अपनी ‘गुणीजन सभा’ शीर्षक इस कड़ी के लिए संगीत के गुणीजनों को श्रोताओं से संवाद के लिए आमंत्रित करती है। और इस संवाद के जरिए उनकी कला के बारे में जानकारी सहित उनका सव्याख्या प्रदर्शन रेकार्ड भी करती है जिससे संगीत के शोधकर्ता और भावी पीढ़ी के विद्यार्थी लाभ उठा सके। गुणीजन सभा में इस बार इंदौर के आचार्य गोकुलोत्सव महाराज आमंत्रित थे जिनसे हैबिटाट सेंटर के अमलतास सभागार में संवाद किया उनकी शिष्या डॉक्टर नीता माथुर ने।

भारतीय संगीत की प्राचीनता के संदर्भ में भगवान कृष्ण की उक्ति ‘वेदानाम सामवेदोस्मि’ का हवाला दिया और उसे सामवेद से जोड़ते हुए बताया कि सामगान दरअसल ऋग्वेद के मंत्रों का गायन था जिससे संगीत की अनेक विधाएं नि:सृत हुर्इं। ध्रुपद धमार और प्रबंध गायन प्राचीन जटा, माला, शिखा, ध्वज, वल्ली जैसी गान विधाओं से ही उपजे। उन्होंने बताया कि हवेली संगीत नाम भले ही नया हो, इसकी परंपरा हजारों साल पुरानी है। यह विष्णु स्वामी परंपरा कृष्ण यजुर्वेद और सामवेद की ही कालजयी परंपरा है। गोकुलोत्सव महाराज इस परंपरा के उत्तराधिकारी होने के साथ वेद, वेदांत, मीमांसा, साहित्य और काव्यादि के भी विद्वान हैं। ध्रुपद, धमार, अष्टपदी, छंद-प्रबंध, खयाल गायन के साथ ही उन्होंने ‘मधुरपिया’ उपनाम से अनेक बंदिशें विविध रागों में और अनेक विधाओं में रची हैं, इस बात की जानकारी देते हुए नीता जी ने उनसे उनकी ‘सर्वांग गायकी’ से जुड़े सवाल पूछे जिनका सोदाहरण उत्तर देते हुए आचार्य गोकुलोत्सव महाराज ने अपने समृद्ध संग्रह से कई चीजें सुनार्इं।

ख्याल का प्राचीन नाम गीतिका था यह बताते हुए उन्होंने राग हमीर कल्याण में होरी के प्रसंग का एक पद तीनताल में आकार की तैयार तानों से सजाकर पेश किया। इसके बाद आज के बड़े ख्याल की बानगी उन्होंने मियां मल्हार के मशहूर ख्याल ‘करीम नाम तेरो …’ को विलंबित एकताल में गाकर दिखाया। मेघ से सारंग निकला है न कि सारंग से मेघ, यह बताते हुए उन्होंने मध्यमादि सारंग को बहुब्रीहि समास ‘मध्यमादि येषाम’ कहकर उल्लेख किया। उन्होंने मेघ के चार अलग-अलग प्रकारों की जानकारी देते हुए उन्हें गाकर दिखाया। बागेश्री की द्रुत एकताल की बंदिश ‘अपनी गरज पकड़ लीनो बैंयां हमारी…’ से लेकर केदार में नंददास रचित विष्णुपद की ध्रुपद शैली में आलापचारी सहित प्रभावी प्रस्तुति तक विविधता का अंत नहीं था।

देवसाख और मुद्रिकी कान्हड़ा जैसे अप्रचलित राग और ध्रुपद, खयाल, रागमाला और तरानों की पेशकश के दौरान खंडमेरु की पेचीदा सरगमों और तैयार तानों से उन्होंने बारहा तालियां भी आमंत्रित कीं। सर्वांग गायकी के इस प्रदर्शन में इस शाम हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी, तबले पर अभिजीत एच और पखावज पर मनमोहन नायक ने उनकी बेहतरीन संगत की।