हमारे समय के सुपरिचित कथाकार राम जन्म पाठक ने अपने विचार और अपनी संवेदना तथा सरोकार को समय-समय पर कविता में ढालने की कोशिश की है। इसकी जानकारी उनके पहले काव्य- संग्रह ” डूबता है एक सितारा और” से मिलती है। इस संग्रह में उनकी आरंभिक कविताओं से लेकर आज तक की कविताएं संग्रहीत हैं, जो लंबे अंतरालों में लिखी गई हैं। इन कविताओं में समय, समाज, राजनीति और व्यक्ति मन की अनेकानेक छवियां अंकित हैं, जो समकालीन यथार्थ को प्रदर्शित करती हैं।

इन कविताओं में समकालीन यथार्थ से संवाद के साथ अपने बार पीछे अतीत को मुड़कर देखने की प्रवृत्ति मिलती है, जहां कवि अपने गांव-गिरांव से लेकर श्हर-दर-शहर भटकने, स्थापित होने और पलायन के चक्र को बखूबी दर्ज करता है। इस तरह गांव, श्हर के अनेकानेक चरित्र दर्ज करता है। आचार-व्यवहार और फितरत दर्ज करता है। इस तरह ये कविताएं गांव-जवार से निकलकर महानगरीय चरित्र और राष्ट्रीय चरित्र में ओ बदलावों तक को अपने जद में ले लेती हैं। और किसी निष्कर्ष पर पहुंचना संभव बनाती हैं।

हमने सोचा
निर्यात करेंगे बुद्ध की करुणा
और आयात कर बैठे घृणा हिटलर की
सोचा था खेती करेंगी गांधी की अहिंस, न्याय, समता और बंधुत्व का
बिरवा लहलहाया नाथूराम के तमंचे का
हमने सोचा था भूमंडलीकरण करेंगे आरोग्य और भय का
पसरा दी महामारी और भय

जगद्गुरु बनने की ऐषणा फलीभूत हुए गुरघंटाल होने में ( हमने सोचा था)
अपने समय की विडंबनाओं, विद्रूपताओं और चालाकियों को दर्ज करती कविताएं बदलते फितरतों को उजागर करती हैं :
फोन न उठाना
या देर से उठना
महज एक आदत नहीं है

यह एक तरीका है दूसरों की अनदेखी का ( फोन न उठाना)
राम जन्म पाठक की कविताओं में लगभग सभी तरह की चिंताएं हैं, जो मनुष्यता की रक्षा के लिए जरूरी हैं। जिसका उपाय कवि बदलाव के स्वप्न में देखता है :
मैं सोचता हूं बदल दूं माई की धोती
…. ( मैं चाहता हूं)।

उनकी कविताओं में एक कचोट दिखती है। दिन-रात की तकलीफें दिखती हैं। चुप रहिए में चुपचाप कराए जाने की लोगों की पीड़ा मुखर हो उठती है। फिर भी कवि में होने का दंभ नहीं दिखता, दिखता है कवि होने का गर्व-
कवि हूं
देव नहीं
देव होता
तो कवि
कैसे होता ! (कवि हूं)

अदला-बदली और सह लेना जैसी कविताएं युग का यथार्थ दिखाती हैं। वे बुरे समय के विद्रूव को दिखाकर उससे मुक्ति का सुझाव सुझाती हैं। यहां जो कुछ भी अमानवीय है, विचलित करने वाला है, सब दर्ज होता है। कवि धुनिया की तरह समय के रेशे-रेशे की धुनाई करता नजर आता है। इसमें प्रेम की पाती भी है और घृणा की चुनौती-पत्र भी।

अपने समय से संवाद करतीं राम जन्म पाठक की कविताएं समकालीन यथार्थ से सीधे मुठभेड़ करती हैं और युग का यथार्थ रचकर उससे निपटने की युक्ति भी बताती हैं। ये कविताएं, कविता के लिए कविता न होकर समाज और मनुष्यता के पक्ष में लिखी गई कविताएं हैं, जो एक जीवन में नए जीवन की तलाश करती हैं। इनसे गुजरना अपने को और अधिक समृद्ध करना है। कविता में समय और समाज की व्यथा-कथा से परिचित होना है।
श्रीरंग ( चर्चित आलोचक और कवि)