गुड़गांव के कला और साहित्य प्रतिष्ठान -आर्ट्स एंड लिटरेचर फाउंडेशन-की पहल पर गुड़गांव नगर निगम, सांस्कृतिक कार्य विभाग और टाइम्स ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में शुरू किए गए उत्सव में इस बार मीरा फाउंडेशन और सोहनलाल चैरिटेबिल ट्रस्ट भी आ जुड़े। बायोडाइवर्सिटी पार्क के मुक्ताकाशी मंच पर गत दिनों आयोजित पांचवां गुड़गांव उत्सव इस बार ‘कबीर बानी’ पर केंद्रित था। पहले दिन राजस्थान से आए लोकगायक मुख्तियार अली ने कबीर बानी का एक रंग पेश किया तो दूसरे दिन शुभा मुद्गल ने दूसरा और तीसरे दिन मदन गोपाल सिंह और चार यार ने तीसरा रंग।

कबीर से अपने सांगीतिक रिश्ते का राज खोलते हुए शुभा मुद्गल ने प्रस्तुति से पहले कहा कि कबीर के दोहों और साखियों से परिचय तो स्कूली पढ़ाई के दौरान ही हो गया था पर जिन्हें सुनकर पहली बार कबीर के गम्भीर अध्ययन की ओर प्रवृत्त हुई वे थे मेरे गुरु पंडित कुमार गन्धर्व। मांझ खमाज के थोड़े से अलाप के बाद उन्होंने दादरे की चलती हुई लय पर ‘मैं कासे पूछूं अपने पिया की बात रे’ शुरू किया। उन्होंने बताया कि यह संगीत रचना तबले पर संगत कर रहे तबला वादक और संगीत संयोजक अनीश प्रधान की थी।

‘हमन हैं इश्क मस्ताना’ के लिए राग झिंझोटी के मर्मस्पर्शी आलाप ने मन्द्र पंचम तक जाकर गम्भीर भूमिका बनाई। इस रचना में कबीर की गहराई को सम्हलकर मापने वाली लय भी एकदम जुदा अंदाज की थी। इसके बाद सोहनी में ‘हमसे रहा नहीं जाए’ में सुर का लगाव झिंझोटी के मन्द्र से सर्वथा विपरीत तार सप्तक में था। पहाड़ी की धुन में अगली पेशकश ‘मुनिया पिंजरे वाली’ की लचकती चाल में श्रोता अपनी तालियों से लय थामे रहे और अंतिम भैरवी ‘साधो जग बौराना’ के वैराग्य बोध की तटस्थ तर्जुमानी थी। इन प्रस्तुतियों की सम्मोहकता में बराबर की हिस्सेदारी सुधीर नायक के हारमोनियम और अनीश प्रधान के तबले की सुचिंतित संगति की भी थी।

पहले दिन राजस्थान के मशहूर लोकगायक मुख्तियार अली और उनके बेटे और शागिर्द वकार यूनुस ने ‘पधारो म्हारे देस’ की स्वागतमयी शुरुआत के बाद कबीर की ‘झीनी रे झीनी चदरिया’ और ‘मोको कहाँ ढूंढ़े रे बन्दे मैं तो तेरे पास में’ जैसे कबीर के जाने पहचाने गीतों से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। अंतिम दिन मदन गोपाल सिंह और उनके चार यार ने मिलकर कबीर बानी के सूफी तत्व को उजागर करते हुए ज़ोरदार समां बांधा। अपने सूफी गायन के लिए सुविख्यात मदनगोपाल जी की आवाज़ में पंजाब वाली ऊंची टेर है जो सुनने वालों के दिलों तक पहुंचती है।