कन्नड़ साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार, पटकथा लेखक एसएल भैरप्पा का बुधवार को बेंगलुरु के एक अस्पताल में निधन हो गया था। 20 अगस्त 1931 को कर्नाटक के हासन जिले में जन्मे भैरप्पा जी ने साहित्य की दुनिया में गहरी छाप छोड़ी। उनकी रचनाएं न सिर्फ कन्नड़ में, बल्कि हिंदी और अन्य भाषाओं में भी पाठकों के दिलों में घर कर गईं। भैरप्पा ने अपने जीवन में दर्शन, इतिहास और समाज की जटिलताओं को बड़े सहज अंदाज में शब्दों में पिरोया। उनका पूरा नाम संतेशिवरा लिंगन्नैया भैरप्पा था। उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे सम्मान मिले थे। भैरप्पा कन्नड़ साहित्य के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध लेखक माने जाते थे। उनकी कई किताबें आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा हैं। उनके निधन पर हम पाठकों के लिए उनके पाँच चर्चित उपन्यासों का स्मरण कर रहे हैं।
पर्व – इस उपन्यास में महाभारत की कहानी को इंसानी नजरिए से देखा गया है। पांडव और कौरव देवता नहीं, बल्कि आम इंसान हैं, जो अपनी कमजोरियों और भावनाओं से जूझते हैं। परिवार, प्रेम और युद्ध के प्रभावों को इतनी गहराई से दिखाया गया है कि पाठक समय और स्थान को भूल जाते हैं। भैरप्पा ने सही और गलत की जटिलताओं को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पेश किया है।
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उत्तरकांड – रामायण के अंतिम भाग को नए अंदाज में पेश करता यह उपन्यास राम और सीता के जीवन के अनकहे पहलुओं को सामने लाता है। राम का कर्तव्य और व्यक्तिगत भावनाओं के बीच संघर्ष पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है। भैरप्पा की शोधपरक शैली और संवेदनशील लेखन इसे आधुनिक पाठकों के लिए बेहद प्रासंगिक बनाते हैं।
सार्थ – यह ऐतिहासिक उपन्यास 8वीं शताब्दी के भारत की सांस्कृतिक यात्रा को जीवंत करता है। व्यापारी कारवां के जरिए समाज, अर्थव्यवस्था और आध्यात्मिकता की खोज पाठक के सामने आती है। नागभट्ट का जीवन दर्शन और आदि शंकराचार्य से मिलना इसे दार्शनिक दृष्टि से भी समृद्ध बनाता है।
आवरण – इस उपन्यास में भैरप्पा ने भारतीय इतिहास और संस्कृति पर इस्लामी प्रभाव को गहराई से देखा है। लक्ष्मी के माध्यम से सत्य की खोज और समाज के छिपे हुए सच को सामने लाना इसे विचारोत्तेजक बनाता है। यह कृति धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक सत्य पर सवाल उठाती है।
द्विधा – यह उपन्यास स्त्री-पुरुष संबंधों और सामाजिक संरचनाओं की जटिलताओं पर केंद्रित है। प्रेम, अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन को भैरप्पा ने संवेदनशीलता से पेश किया है। यह कहानी पाठकों को मानवीय दुर्बलताओं और उनके परिणामों पर सोचने का अवसर देती है।
एस. एल. भैरप्पा की ये पांच प्रमुख कृतियां उनके गहरे दर्शन और समाज पर नजर रखने वाले दृष्टिकोण का अद्भुत उदाहरण हैं।