संगीत नाटक अकादमी ने अकादमी रत्न विदुषी गिरिजा देवी के 87वें जन्मदिन का जश्न एक अनूठे अंदाज में मनाया। इस मौके पर कमानी सभागार में आयोजित संगीत-संध्या दरअसल चार दिन पहले से अकादमी के मेघदूत परिसर में आयोजित गहन कार्यशाला की पूर्णाहुति थी। यहां आमंत्रित अतिथियों के सामने अपने शिष्यों को सिखाते हुए उनकी नायाब चीजों का अकादमी अभिलेखागार के लिए ध्वन्यांकन किया गया। कार्यक्रम के पूर्वार्द्ध में उनके गंडा-बंध शागिर्दों ने उनकी सिखाई विरल बंदिशें पेश की और उत्तरार्ध में स्वयं विदुषी गिरिजा देवी ने। आने वाली पीढ़ियों के लिए इस बहुमूल्य धरोहर को सहेजने के लिए उन्होंने अकादमी के वर्तमान अध्यक्ष शेखर सेन को साधुवाद और आशीष दिया।
समारोह का शुभारंभ विदुषी गिरिजा देवी पर उनके शिष्य देवप्रिय अधिकारी और समन्वय सरकार द्वारा बनाई गई एक जीवनवृत्त परक फिल्म ‘ए लाइफ इन म्युजिक’ से हुआ, जो उनके विरल व्यक्तित्व और कृतित्व की प्रामाणिक और खूबसूरत झांकी थी। संगीतोत्सव की शुरुआत उनकी वरिष्ठ शिष्या सुनंदा शर्मा के गाए राग पूरियकल्याण के छोटे ख्याल ‘करो ना मनमानी’ से हुई। इसे उन्होंने राग की सिलसिलेवार बढ़त करते हुए विविध तानों से सजा कर पेश किया। इसके बाद रीता देव ने मिश्र खमाज में ठुमरी ‘जाओ वहीं तुम श्याम’ में खंडिता नायिका के मनोभावों को बोल-बनाव में ढाला।
युवा राहुल और रोहित मिश्र ने अपने युगल-गायन में अपनी गुरु गिरिजा देवी के राग यमन में रचे टप-खयाल और टप-तराने की धुआंधार प्रस्तुति दी। बहुतों ने इस तरह का टप्पा अंग का खयाल और टप्पा अंग का तराना शायद पहली बार सुना हो! इसके बाद मानसी मजूमदार ने तिलक कामोद में ठुमरी, शालिनी देव ने चैती और मालिनी अवस्थी ने पीलू में दादरा ‘लागी बयरिया’ पेश किया। अपने शिष्य वर्ग द्वारा प्रस्तुत शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत की बहुरंगी विविधता के बाद स्वयं गिरिजा देवी जी मंच पर आईं।
अपने गायन की सुरीली शुरुआत ठुमरी खमाज में ‘ठाढ़े रहियो श्याम’ से करते हुए गिरिजा देवी ने होरी ‘नैना गुलाल से लाल बने हैं, लाली छुपे ना लला की सलोनी’, और दादरा ‘दीवाना किए श्याम, क्या जादू डारा’ गाकर मुसलमान फकीर भक्तकवि एकरंग मियां के रचे भजन ‘सांवरिया मन भाया रे’ से अपना सरस गायन संपन्न किया। इस पूरी शाम भाव में डूब कर गाते हुए उन्होंने अपना ही कथन ‘भाव बिना भगवान नहीं’ सच कर दिखाया।
गिरिजा देवी ने बताया कि बनारस घराना चौमुखी गायकी के लिए प्रसिद्ध रहा है। बहुत से पुराने ध्रुपद, धमार, छंद-प्रबंध, माठा, कौल-कलबाना विस्मृति के गर्भ में विलीन हो गए हैं। मैं आज भी खोज में हूं कि कहीं बचा मिले तो सीख कर अपने शिष्यों को सिखाऊं। शेखर सेन ने पहली बार यह बीड़ा उठाया है कि हमारे संगीत के अलग अलग घरानों की ये अमूल्य धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए बची रहे।