1. मेरी आत्मा का लिबास तुम

तुमने कहा था
जब बिखरने लगूं तो
समेट लेना मुझे।
देखो-
नीले आकाश से चुरा कर
दूधिया रोशनी,
उज्ज्वलित कर रही हूं
अपनी रूह
तुमसे मिलन के लिए।
तुम्हारी आंखों के स्पर्श से
जाग उठा है ओज मेरा।
हथेलियों पर रखा था
जो तुमने स्वप्न बीज,
पल्लवित हो रहा है
तुम्हारी छुअन से।
अब जबकि
मेरी आत्मा का लिबास
बन गए हो तुम,
तो प्रीत की नदी बन
मैं बहूंगी तुम्हारी धमनियों में,
और हमेशा के लिए
ठहर जाऊंगी
तुम्हारे अंतस-सागर में।
सूनेपन की गठरी फेंक कर
उदासियों के कैक्टस को
किसी नदी किनारे डुबो कर,
चल दूंगी मैं
अनंत यात्रा पर
साथ तुम्हारे।

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2. मेरी आंखों का ख्वाब

खिली है आज धूप
उतर गया है बुखार
सर्दी में ठिठुरता
वायरल में तपता
बहुत दिनों बाद
कांटों में उलझता
फिर खिला है गुलाब
तुम्हारी आंखों का ख्वाब।
सुनो न,
इस लहकते-महकते
मुस्कुराते गुलाब को
सहेज लेना चाहती हूं
अपनी आंखों में।
टांक देना चाहती हूं
तुम्हारे चेहरे पर
भर देना चाहती हूं
तुम्हारी आंखों में भी
एक ख्वाब, एक गुलाब।
यह कभी बिखरेगा
न कभी कुम्हलाएगा,
तुम्हारी स्मृतियों में
सदा मुस्कुराएगा
यह गुलाब-
तुम्हारे दिल का सुरखाब
और-
मेरी आंखों में ख्वाब से तुम।

-सांत्वना श्रीकांत

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