जब रोम जल रहा था
तब नीरो बांसुरी बजा रहा था…
ये तो सब जानते हैं,
पर जो नहीं जान पाई दुनिया
और जो नहीं लिख पाए इतिहासकार
वो था…
उस पागल कवि का क्रांति गीत
उसकी अधजली कविताएं
उसके मुरझाए शोकगीत…

जो आज भी जीवित हैं,
और जिसने मरने नहीं दिया है
नीरो को,
न ही बुझने दिया उस रोज लगी आग को…उस रोज,
जो बच गए थे,
वो आगे भी जलते रहे
सहस्त्राब्दीयों तक…

प्रेम में डूबा वो पागल कवि
आज भी लिख रहा है नित नए क्रांति गीत,
क्योंकि…
दुनिया के
किसी न किसी कोने में रोम आज भी जल रहा है,
नीरो आज भी बांसुरी बजा रहा है,

और…
प्रेम में डूबा वो पागल कवि
आज भी इंतजार में है
कि अपनी अधजली कविताओं से
वो बचा लेगा रोम को,
और बचा लेगा
उस रोज बचे हुए उन लोगों को भी…!

– नीरज द्विवेदी।