हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे के साथ भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम की विविधत पूजा की जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं में तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। इसी के कारण इनका विवाह शालिग्राम से कराया जाता है।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, तुलसी विवाह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। हालांकि, यह पर्व प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा के बीच किसी भी समय मनाया जा सकता है। कुछ जगहों पर ये पूरे पांच दिनों तक मनाया जाता है, जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। बता दें कि तुलसी विवाह मानसून के मौसम के अंत और हिंदू विवाह के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।
तुलसी विवाह पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति और परिवार के सदस्यों की भलाई के लिए तुलसी पूजन करने के साथ विवाह का आयोजन करती हैं। तुलसी को स्वयं देवी महालक्ष्मी का अवतार माना जाता है, जो पहले ‘वृंदा’ के रूप में पैदा हुई थीं। वैवाहिक सुख पाने के लिए तुलसी विवाह का अनुष्ठान करती हैं। इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम और तुलसी माता का विवाह संपन्न करते सुखी वैवाहिक जीवन और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। मान्यता है कि तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने से कन्यादान करने के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह के दिन खूबसूरत मंडप भी तैयार किया जाता है। गन्ने से तुलसी के पौधे के चारों ओर एक खूबसूरत मंडप बनाया जाता है और रंग-बिरंगी रंगोली से सजाया जाता है। फिर तुलसी के पौधे को भारतीय दुल्हन की तरह सजाया जाता है। पौधे को साड़ी, झुमके सहित अन्य गहने पहनाएं जाते हैं। तुलसी के पौधे पर सिंदूर चूर्ण और हल्दी का लेप भी लगाया जाता है। तुलसी के पौधे पर कागज आदि का चेहरा भी बनाया जाता है, जिसमें नथनी और बिंदी भी लगाई जाती है। इसके साथ ही दूल्हे की बात करें, तो भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम के पत्थर से विवाह कराया जाता है। जिसे धोती आदि पहनाई जाती हैRead More