Bihar Elections 2025 : दरभंगा के चीनी मीलों की बात करे तो ये बंद पड़े हैं, 1500 के करीब जहां लोग इस एक चीनी मिल में काम करते थे, झटके में बेरोज़गार हो गए। बिहार, जो कभी देश की चीनी का 40% हिस्सा बनाता था, आज मात्र 4% तक सिमट गया है। यह कहानी उन चीनी मिलों की है, जो कभी बिहार की आर्थिक ताकत थीं, लेकिन अब ज्यादातर खंडहर बन चुकी हैं। RJD नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने PM नरेंद्र मोदी को 2014 का वादा याद दिलाया, जब उन्होंने मोतिहारी में बंद चीनी मिलों को फिर से खोलने और वहां की चीनी से चाय पीने की बात कही थी। लेकिन 2020 में मोतिहारी रैली में मोदी ने इस पर चुप्पी साध ली। तेजस्वी ने ट्वीट कर तंज कसा, “मिलें और चाय का क्या हुआ?” स्वतंत्रता से पहले बिहार में 33 मिलें थीं, अब 28 बची हैं, जिनमें से सिर्फ 11 चल रही हैं। 1972 में केंद्र की सलाह पर बिहार सरकार ने 15 मिलें अधिग्रहित कीं, लेकिन कीमतों में गिरावट और लागत बढ़ने से ये बंद हो गईं। नीतीश कुमार के 15 साल के शासन में कोई ठोस पुनरुद्धार नहीं हुआ। 2008 में HPCL ने कुछ मिलों के लिए बोली लगाई, लेकिन इथेनॉल प्रतिबंध ने निवेशकों को हतोत्साहित किया। बिहार के मजदूर अब पलायन को मजबूर हैं, और मिलों के खंडहर टूटे वादों की गवाही देते हैं। देखिये ऊहिनी की ये ग्राउंड रिपोर्ट ।
