जब भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात आती है, तो वो महात्मा गांधी के 1936 में अजमेर दौरे को याद करते हैं। उस वक्त शोभाराम की उम्र महज़ 11 साल थी, लेकिन गांधी जी के “करो या मरो” के बुलंद नारे ने उनके दिल में एक आग जला दी। इस जोश ने उन्हें संघर्ष के रास्ते पर डाल दिया। स्कूल से छुट्टी लेकर प्रदर्शन में शामिल होने की वजह से उन्हें कई बार डांट भी पड़ी, लेकिन उनकी दृढ़ता ने उनके माता-पिता का समर्थन हासिल कर लिया। शोभाराम ने पुलिस की कड़ी पूछताछ और अत्याचार को सहा, लेकिन कभी भी कोई जानकारी नहीं दी। इस चुप्पी की वजह से उन्हें जेल भी हुई, लेकिन बाल अपराध अधिनियम के तहत कानूनी सहायता ने उनकी रिहाई सुनिश्चित की। शोभाराम, जो एक दलित और नेहरूवादी समाजवादी भी हैं, को उनके साहस के लिए 2011 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और 2013 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सम्मानित किया था, लेकिन उसके बाद से वो अजमेर में एक गुमनाम सी ज़िंदगी जी रहे हैं। आज भी, वो श्रद्धापूर्वक केसरगंज के स्वतंत्रता सेनानी भवन जाते हैं। देखिये ये डॉक्यूमेंट्री और जानिए उनके बारे में….