Friedlieb Ferdinand Runge 225th Birthday: दुनिया के महान वैज्ञानिकों में से एक फर्डिनेंड रुंज का एनालिटिकल केमिस्ट के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है। उनका जन्म 8 फरवरी, 1794 को हैम्बर्ग के समीप हुआ था। उन्हें माइड्रिएटिक इफेक्ट (प्यूपिल डायलेटिंग) के लिए भी जाना जाता है। इससे आंखों की पुतलियां प्रभावित होती हैं। फर्डिनेंड ने कैफीन की पहचान की थी। साथ ही उन्होंने कोलतार डाई की भी खोज की थी।
फर्डिनेंड ने वर्ष 1819 में माइड्रिएटिक इफेक्ट (बेलाडोना) पर शोध का प्रदर्शन किया था, जिसके बाद उन्हें कॉफी पर शोध के लिए प्रोत्साहित किया गया था। इसके कुछ महीनों बाद ही उन्होंने कैफीन की पहचान की थी। बता दें कि कैफीन की ज्यादा मात्रा का सेवन करने से शरीर को नुकसान पहुंचता है। फर्डिनेंड की 25 मार्च, 1867 में 73 वर्ष की उम्र में ऑरेनबर्ग में निधन हो गया था।

Highlights
Friedlieb को बचपन से ही कैमिस्ट्री की तरफ दिलचस्पी थी और उन्होंने इस दौरान कई प्रयोग भी किए। 1819 में रंज ने कैफीन की खोज की थी।
फ्रेडलीब फर्डिनंड ने खेतों की पैदावार बढ़ाने के लिए हड्डियों और बूचड़खानों के अवशेष का इस्तेमाल करने का भी सुझाव दिया था। उनका मानना था कि ऐसा करने से खेतों की पैदावार में बेहतरी हो सकती है।
बहुत ही कम उम्र से फ्रेडलीब ने केमिस्ट्री में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। किशोर उम्र में ही उन्होंने बेलाडोना के पौधे पर शोध किया।
डॉक्टोरेट पूरा करने के बाद फ्रेडलीब पोलैंड की एक यूनिवर्सिटी में प्रफेसर बन गए। लेकिन वहां उनको बहुत कम वेतन मिलता था। इससे उनको निराशा हुई और पढ़ाना छोड़ दिया। उन्होंने साल 1833 में एक कंपनी में जॉब कर ली।
फ्रेडलीब फर्डिनंड रंज का जन्म 8 फरवरी, 1794 को जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में हुआ। वह ऐनालिटिकल केमिस्ट था यानी चीजों की रासायनिक खासियत के बारे में पता लगाते और बताते थे। उन्होंने बर्लिन में औषधि की पढ़ाई की और उसके बाद जेना की यूनिवर्सिटी में चले गए।
रुंज को बचपन में ही कैमिस्ट्री से लगाव हो गया था और किशोरावस्था तक आते-आते उन्होंने कई प्रयोग शुरू कर दिए थे। उनका शुरुआती प्रयोग बेल्डोना के पोधे के रस से आंख की पुतलियों के फैलने से जुड़ा हुआ था। एक बार गलती से रन्गे की आंख में बेल्डोना का रस चला गया था, इसके बाद उन्होंने इसका असर महसूस किया।
डॉक्टोरेट पूरा करने के बाद फ्रेडलीब पोलैंड की एक यूनिवर्सिटी में प्रफेसर बन गए। लेकिन वहां उनको बहुत कम वेतन मिलता था। इससे उनको निराशा हुई और पढ़ाना छोड़ दिया। उन्होंने साल 1833 में एक कंपनी में जॉब कर ली। कंपनी में उनको टेक्निकल डायरेक्टर बनाया गया।
जेना यूनिवर्सिटी में कैमिस्ट जोहान वोल्फगैंग के अंडर शिक्षा प्राप्त करते वक्त Friedlieb Ferdinand Runge को एक बार फिर बेल्डोना पर शोध करने के लिए कहा गया था। केवल इतना ही नहीं, फ्रेडलीब फर्डिनेंड रुंज को कॉफी का विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यही वजह थी कि कुछ महीनों के शोध के बाद उन्होंने कैफीन की खोज की थी।
फ्रेडलीब फर्डिनेंड रुंज ने अपने जीवनकाल के दौरान चुकंदर के रस से चीनी निकालने की विधि भी तैयार की थी। कैफीन और कोलतार डाई के अलावा फ्रेडलीब फर्डिनेंड रुंज ऐसे पहले वैज्ञानिकों में से एक थे जिन्हें कुनैन का आविष्कारक भी माना जाता है।
जब वह जेना यूनिवर्सिटी में केमिस्ट जोहान वोल्फगैंग के निर्देशन में पढ़ाई कर रहे थे तब उन्हें बेल्डॉना पर फिर से प्रयोग करने के लिए कहा गया। उनके प्रोफेसर के एक साथी ने उनके प्रयोग पर ध्यान दिया और उन्हें कॉफी का विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके कुछ ही महीने बाद रुंज ने कैफीन की पहचान कर ली।
वह कुनैन (मलेरिया के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा) को अलग करने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक भी है। उनका निधन 25 मार्च 1867 को जर्मनी के ऑरेनियनबर्ग में हुआ था।
फ्रेडलीब फर्डिनेंड रुंज ने पेपर क्रोमैटोग्राफी के एक ऑरिजिनेटर के रूप में भी योगदान दिया। उन्होंने चुकंदर के रस से चीनी निकालने के लिए एक विधि तैयार की थी।
फ्रीएडलीब फर्डिनेंड रुंज ने रसायन क्षेत्र में बहुत सारे प्रयोग किए। उन्होंने कई रसायन यौगिकों की खोज और प्रयोगी की जिसमें कैफीन, सबसे पहला तारकोल, पेपर क्रोमैटोग्राफी, पिरामिड, चिनोलिन, फिनोल, थाइमोल और एट्रोपीन आदि की खोज की थी।
कैफीन एक कड़वी, सफेद क्रिस्टलाभ एक्सेंथाइन एलकेलॉइड होती है, जो एक साइकोऐक्टिव (मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली) उत्तेजक ड्रग है। 1819 में रुंज ने इसकी खोज की और इसे कैफीन नाम दिया। इसके लिए जर्मन शब्द Kaffee था, जो कैफीन बन गया।
कैफीन के अलावा इन्होंने कोलतार डाई की भी खोज की जिसकी सहायता कपड़ों में रंगाई का काम किया जाता है। इतना ही नहीं वे कुनैन के आविष्कारक भी कहे जाते हैं। कुनैन वह पदार्थ है जिसकी मदद से मलेरिया के इलाज की दवाईयां बनाई जाती है।
एनालिटिकल केमिस्ट वो होता है जो रसायन विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत है और उस उस क्षेत्र में नए-नए तरीके और आयाम ढूंढता है। ये जर्मन के महान वैज्ञानिकों में से एक थे।
रुंज ने सफलतापूर्वक अरेबिक मोका बीन्स से कैफीन केमिकल को अलग किया और उसका पता लगाया। इस कैफीन की रासायनिक संरचना पहली बार 1819 में सामने आई। केमिकल हिस्ट्री में बड़ा नाम होने के बावजूद अपने जीवन के आखिरी दिनों में उन्हें 1852 में एक केमिकल कंपनी के मैनेजर द्वारा निकाल दिया गया और वह गरीबी में रहे।
रुंज को बचपन में ही कैमिस्ट्री से लगाव हो गया था और किशोरावस्था तक आते-आते उन्होंने कई प्रयोग शुरू कर दिए थे। उनका शुरुआती प्रयोग बेल्डोना के पोधे के रस से आंख की पुतलियों के फैलने से जुड़ा हुआ था। एक बार गलती से रन्गे की आंख में बेल्डोना का रस चला गया था, इसके बाद उन्होंने इसका असर महसूस किया।
जब वह जेना यूनिवर्सिटी में कैमिस्ट जोहान वोल्फगैंग के अंडर पढ़ाई कर रहे थे तब उन्हें बेल्डोना पर फिर से प्रयोग करने के लिए कहा गया। उनके प्रोफेसर के एक साथी ने उनके प्रयोग पर ध्यान दिया और उन्हें कॉफी का विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके कुछ ही महीने बाद रुंज ने कैफीन की पहचान कर ली।
रुंज ने बर्लिन यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की और 1831 तक ब्रेसलौ यूनिवर्सिटी में पढ़ाया। उनके सबसे प्रसिद्ध अविष्कारों में पहला कोलतार डाई के साथ कपड़ो को डाई करने की प्रक्रिया शामिल है। वह कुनैन (मलेरिया के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा) को अलग करने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक भी है।
रुंज ने पेपर क्रोमैटोग्राफी (रासायनिक पदार्थों को अलग करने की एक प्रारंभिक तकनीक) के एक ऑरिजिनेटर के रूप में भी योगदान दिया। इसके साथ ही उन्होंने चुकंदर के रस से चीनी निकालने के लिए एक विधि तैयार की।