Elisa Leonida Zamfirescu Google Doodle: दुनिया की पहली महिला इंजीनियर एलिसा लियोनिडा जैम्फिरेस्क्यू की आज (10 नवंबर, 2018) 131वीं जयंती है। आज उन्हें सारा विश्व याद कर रहा है। गूगल ने भी शानदार डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि है। लिंग भेद की बाधाओं से लड़ते हुए वह विश्व की पहली महिला इंजीनियर बनी थीं। एलिसा को जनरल एसोसिएशन ऑफ रोमेनियन इंजीनियर्स की पहली महिला सदस्य होने का भी गौरव प्राप्त है। इसके अलावा वह जियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ रोमेनिया के लिए लैब भी चलाती थीं। रोमानिया के गलाटी शहर में 10 नवंबर, 1887 को जन्मी एलिसा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई उन दिनों की जब महिलाएं इंजीनियर नहीं हुआ करती थी। अपने दस भाई-बहनों में से एक एलाइसा हाईस्कूल पास करने के बाद बुचारेस्ट के स्कूल ऑफ ब्रिजेज एंड रोज से पढ़ाई करना चाहती थीं, लेकिन लड़की होने के कारण उनका आवेदन रद्द कर दिया गया था। इसके बाद वह जर्मनी के रॉयल टेक्निकल एकेडमी पहुंची, जहां से उन्होंने मकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वहां भी उन्हें काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार संस्थान के प्रमुख ने उनसे कहा कि बेहतर होता कि आप चर्च, बच्चे और रसोई पर फोकस करतीं। लेकिन तीन साल बाद यानी 1912 में उन्होंने इंजिनियरिंग में स्नातक कर लिया और विश्व की पहली महिला इंजिनियरों में से एक बन गईं।
25 नवंबर, 1973 में रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में एलिसा ने आखिरी सांस ली थी। एलिसा रोमानिया में कोयला, प्राकृतिक गैस, क्रोमियम, बॉक्साइट और तांबा (कॉपर) जैसे प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति से संबंधित अध्ययन से भी जुड़ी रही थीं। रोमानियाई सरकार ने उनके योगदान को सम्मानित करते हुए वर्ष 1993 में राजधानी बुखारेस्ट की एक स्ट्रीट का नाम बदलकर उनके नाम पर रख दिया था। एलिसा लियोनिडा ने सेंट्रल स्कूल ऑफ गर्ल्स, बुखारेस्ट से स्नातक की डिग्री ली। लेकिन जब उन्होंने स्कूल ऑफ हाइवे एंड ब्रिजेज, बुखारेस्ट के लिए अप्लाई किया तो उन्हें यहां भी लड़की होने के चलते रिजेक्ट कर दिया गया। इसके बाद एलिसा ने जर्मनी की रॉयल टेक्निकल एकेडमी में एडमिशन के लिए अप्लाई किया, जहां साल 1909 में उनका आवेदन स्वीकार कर लिया गया। हालांकि यहां भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन वह डटी रहीं और अपने इंजीनियर बनने के अपने सपने को पूरा किया।
डिग्री हासिल करने के बाद एलिसा लियोनिडा फिर से अपने देश रोमानिया लौटीं और वहां जियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ रोमानिया में बतौर असिस्टेंट काम करना शुरु कर दिया। इसके बाद एलिसा ने वर्ल्ड वॉर के दौरान रेड क्रॉस सोसाइटी के साथ भी काम किया। रेड क्रॉस के लिए काम करने के दौरान ही एलिसा को एक केमिस्ट से प्यार हुआ, जिनसे उन्होंने बाद में शादी कर ली। वर्ल्ड वॉर के बाद एलिसा ने पिटार मोस स्कूल ऑफ गर्ल्स में भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान भी पढ़ाया।
एलिसा के फ्रेंच- बॉर्न नाना चार्ल्स गिल इंजीनियर थे और उनके भाई Dimitrie Leonida भी फील्ड में स्नातक कर चुके थे जिनसे उन्हें इंजीनियर की पढ़ाई करने की प्रेरणा मिली।
कुछ लोगों का मानना है कि एलिसा लियोनिडा, दुनिया की पहली महिला इंजीनियर नहीं थी। क्योंकि उनसे पहले आयरलैंड की एलिस पैरी ने यूरोप में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली थी। हालांकि इस पर अभी तक विवाद है।
विश्व युद्ध 1 के दौरान एलिसा अपना काम छोड़कर रेड क्रॉस के साथ जुड़ गई थीं। इस दौरान उन्होंने लोगों की भलाई के लिए कई अस्पतालों के साथ काम किया।
एलिसा लियोनिडा का इंजीनियरिंग से जुड़ाव का एक कारण उनके परिवार में कई इंजीनियरों का होना भी हो सकता है। बता दें कि एलिसा लियोनिडा जैमफिरेस्क्यु के दादा एक इंजीनियर थे। वहीं एलिसा के भाई दिमित्री लियोनिडा भी एक इंजीनियर ग्रेजुएट थे।
जब एलिसा ने स्कूल ऑफ हाइवे एंड ब्रिजेज, बुखारेस्ट के लिए अप्लाई किया तो उन्हें यहां भी लड़की होने के चलते रिजेक्ट कर दिया गया।
एलिसा को बहुत भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन वह डटी रहीं और अपने इंजीनियर बनने के अपने सपने को पूरा किया।
एक बार संस्थान के प्रमुख ने उनसे कहा कि बेहतर होता कि आप चर्च, बच्चे और रसोई पर फोकस करतीं। लेकिन तीन साल बाद यानी 1912 में उन्होंने इंजिनियरिंग में स्नातक कर लिया और विश्व की पहली महिला इंजिनियरों में से एक बन गईं।
दो बेटियों की मां, एलिसा ने पीटर मोस स्कूल ऑफ गर्ल्स और बुखारेस्ट में स्कूल ऑफ इलेक्ट्रिशियन एंड मैकेनिक्स में भौतिक विज्ञान और रसायन शास्त्र भी पढ़ाया।
एलाइसा ने स्नातक के बाद उन्होंने जिअलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ रोमानिया जॉइन किया जहां उन्होंने प्रयोगशाला का नेतृत्व किया। वह जनरल एसोसिएशन ऑफ रोमानियन इंजीनियर की पहली महिला सदस्य बनी थीं। उन्होंने पीटर मॉस स्कूल ऑफ गर्ल्स के साथ-साथ स्कूल ऑफ इलेक्ट्रिशंस और मकैनिक्स, बुचारेस्ट में फिजिक्स और केमिस्ट्री भी पढ़ाई। लैब के प्रमुख के तौर पर उन्होंने मिनरल्स और अन्य चीजों के अध्ययन के लिए नए तरीके एवं तकनीक का सहारा लिया।
अपने दस भाई-बहनों में से एक एलिसा हाईस्कूल पास करने के बाद बुचारेस्ट के स्कूल ऑफ ब्रिजेज एंड रोज से पढ़ाई करना चाहती थीं, लेकिन लड़की होने के कारण उनका आवेदन रद्द कर दिया गया था। इसके बाद वह जर्मनी के रॉयल टेक्निकल एकेडमी पहुंची, जहां से उन्होंने मकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वहां भी उन्हें काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार संस्थान के प्रमुख ने उनसे कहा कि बेहतर होता कि आप चर्च, बच्चे और रसोई पर फोकस करतीं। लेकिन तीन साल बाद यानी 1912 में उन्होंने इंजिनियरिंग में स्नातक कर लिया और विश्व की पहली महिला इंजिनियरों में से एक बन गईं।
गूगल ने एलिसा को श्रद्धांजलि देते हुए एक अनोखा डूडल बनाया है। एलिसा जेनरल एसोसिएशन ऑफ रोमेनियन इंजीनियर्स की पहली महिला सदस्य थीं। वह जियोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ रोमेनिया के लिए लैब भी चलाती थीं। रोमानिया के गलाटी शहर में 10 नवंबर, 1887 को जन्मी एलिसा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई उन दिनों की जब महिलाएं इंजीनियर नहीं हुआ करती थी।
1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एलिसा ने मारसस्ती के छोटे शहर के आसपास एक अस्पताल प्रबंधक के रूप में रेड क्रॉस के लिए काम किया। यहां रोमानिया और जर्मनी के बीच अंतिम बड़ी लड़ाई हुई थी।
एलिसा ने ऑर्सोवा माउंटेन में कैमिस्टी ऑफ क्रोमाइट नामक रिसर्च पेपर लिखा।
ग्रेडिएशन पूरी होने के बाद बीएसएफ जर्मनी से एलिसा को जॉब ऑफर मिला था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था।
एलिसा के फ्रेंच- बॉर्न नाना चार्ल्स गिल इंजीनियर थे और उनके भाई Dimitrie Leonida भी फील्ड में स्नातक कर चुके थे जिनसे उन्हें इंजीनियर की पढ़ाई करने की प्रेरणा मिली।
सभी भेदभावों का सामना करने के बाद एलिसा ने साल 1912 में इंजीनियरिंग डिप्लोमा हासिल किया।
रॉयल टेक्नीकल अकेडमी के डीन ने एक बार एनिसा से कहा था कि बेहतर है वह चर्च, बच्चे और किचन पर अपना ध्यान केंद्रित करें।
एलिसा लियोनिडा ने अपने करियर के दौरान शोध से संबंधित 85,000 के करीब एनालिसिस बुलेटिन पब्लिश किए।
बता दें कि एलिसा लियोनिडा ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई जर्मनी से की थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद जर्मनी की सरकार ने एलिसा को नौकरी का प्रस्ताव भी दिया था। लेकिन एलिसा ने प्रस्ताव ठुकराकर अपने देश वापस लौटने का फैसला किया था।
एलिसा लियोनिडा ने 75 साल की उम्र तक काम किया और रिटायरमेंट के बाद 86 साल की उम्र में 25 नवंबर, 1973 को उनका निधन हो गया।
कुछ लोगों का मानना है कि एलिसा लियोनिडा, दुनिया की पहली महिला इंजीनियर नहीं थी। क्योंकि उनसे पहले आयरलैंड की एलिस पैरी ने यूरोप में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली थी। हालांकि इस पर अभी तक विवाद है।
कुछ लोगों का मानना है कि एलिसा लियोनिडा, दुनिया की पहली महिला इंजीनियर नहीं थी। क्योंकि उनसे पहले आयरलैंड की एलिस पैरी ने यूरोप में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली थी। हालांकि इस पर अभी तक विवाद है।
रोमानियाई सरकार ने साल 1993 में राजधानी बुखारेस्ट में एक सड़क का नामकरण एलिसा लियोनिडा के नाम पर करके उन्हें सम्मान दिया गया था।
एलिसा लियोनेडा ने कोयला, प्राकृतिक गैस, क्रोमियम, बॉक्साइट और तांबा जैसे प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति से संबंधित अध्ययन किया।
रेड क्रास के साथ काम करते हुए ही एलिसा को एक केमिस्ट से प्यार हुआ। इन केमिस्ट का नाम था कॉन्सटेंटाइन जैमफिरेस्क्यु। बाद में दोनों ने शादी कर ली और दोनों के 2 बेटियां हुईं थी।
वर्ल्ड वॉर 1 के दौरान एलिसा अपना काम छोड़कर रेड क्रॉस के साथ जुड़ गई थीं। इस दौरान उन्होंने लोगों की भलाई के लिए कई अस्पतालों के साथ काम किया।
एलिसा ने जर्मनी की रॉयल टेक्निकल एकेडमी से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उन्हें जर्मनी में प्रतिष्ठित BASF में नौकरी की पेशकश की गई थी। लेकिन एलिसा लियोनिडा ने ये प्रस्ताव ठुकराकर अपने वतन रोमानिया लौटने का फैसला किया था।
एलिसा लियोनिडा का इंजीनियरिंग से जुड़ाव का एक कारण उनके परिवार में कई इंजीनियरों का होना भी हो सकता है। बता दें कि एलिसा लियोनिडा जैमफिरेस्क्यु के दादा एक इंजीनियर थे। वहीं एलिसा के भाई दिमित्री लियोनिडा भी एक इंजीनियर ग्रेजुएट थे।