The Fall of the Berlin Wall: बर्लिन की दीवार वेस्ट बर्लिन और जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य के बीच एक अवरोध थी। इस दीवार ने 28 साल तक बर्लिन शहर को पूर्वी और पश्चिमी टुकड़ों में बांटकर रखा। इस दीवार को 13 अगस्त 1961 को बनाया गया था और 9 नवम्बर, 1989 में इसे तोड़ दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब जर्मनी का विभाजन हो गया, तो सैंकड़ों कारीगर और व्यवसायी प्रतिदिन पूर्वी बर्लिन को छोड़कर पश्चिमी बर्लिन जाने लगे। बहुत से लोग राजनैतिक कारणों से भी समाजवादी पूर्वी जर्मनी को छोड़कर पूंजीवादी पश्चिमी जर्मनी जाने लगे। इससे पूर्वी जर्मनी को आर्थिक और राजनैतिक रूप से बहुत हानि होने लगी। बर्लिन दीवार का उद्देश्य इसी प्रवासन को रोकना था। इस दीवार के विचार की कल्पना वाल्टर उल्ब्रिख़्त के प्रशासन ने की और सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने इसे मंजूरी दी।
इसे गिरे हुए भी अब तीस साल बीत चुका है और साथ ही दोनों पुराने टुकड़ों के बीच का अंतर भी। शीतयुद्ध काल के अवशेष देखने हों तो करीब 160 किलोमीटर लंबे बर्लिन वॉल ट्रेल पर जाना इसका सबसे अच्छा तरीका है। यह एक राउंड टूर है इसलिए आप इस ट्रेल पर अपनी यात्रा कहीं से भी शुरू कर सकते हैं। हालांकि शुरुआत का सबसे लोकप्रिय बिन्दु बर्लिन वॉर मेमोरियल है।


वो सुबह के एक बजे का वक़्त था, पूर्वी जर्मनी की सीमा पुलिस और सशस्त्र बल सोवियत सेक्टर की सीमाओं पर तैनात कर दिए गए। उनके सामने दूसरी तरफ़ अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और पश्चिमी बर्लिन की पुलिस थी।
ब्रांडेनबुर्ग गेट के अलावा इस ट्रेल का दूसरा सदाबहार आकर्षण है ईस्ट साइड गैलरी। कई अंतरराष्ट्रीय कलाकारों ने 1990 में बच गई इस 1.3 किलोमीटर लंबी दीवार को पेंट कर इसे दुनिया की सबसे बड़ी खुली कला दीर्घा बना दिया। खासकर लियोनिद ब्रेझनेव और एरिष होनेकर का चुंबन दिखाती ये पेंटिंग तो अब इस आर्ट गैलरी की पहचान बन चुकी है।
9 नवंबर को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है। इस फैसले के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया के जरिए आज के विशेष दिन के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि आज भारत ने दुनिया के सामने एकता की मिसाल रखी है। उन्होंने कहा कि 9 नवंबर को ही बर्लिन की दीवार गिराई गई थी, इसी तारीख को करतारपुर कॉरिडर खोला गया है और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। यहां क्लिक करके जानें पीएम मोदी ने और क्या कहा-
हालात ऐसे बन गए कि पूर्वी जर्मनी के आस-पास के इलाकों के लिए पश्चिमी बर्लिन स्थाई रूप से गले की हड्डी बन गया और 13 अगस्त, 1961 को पलक झपकते ही चीज़ें नाटकीय रूप से बदल गईं।
9 नवंबर 1989 को न्यू ईस्ट जर्मन ट्रेवल पॉलिसी की घोषणा की गई। प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए सूचना दी गई कि बर्लिन के मध्य में हजारों लोग सीधे तौर पर पहरेदार सीमा पार चले जाएं, जिसे कुछ ही घंटों के लिए खोला जाएगा।
9 नवंबर 1989 वो तारीख थी जिसने सब एक पल में बदल कर रख दिया था। इस दिन जब एक न्यू ईस्ट जर्मन ट्रेवल पॉलिसी की घोषणा की गई। राज्य के एक टीवी चैनल पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए सूचना दी गई की कि सभी पूर्वी जर्मन नागरिक पश्चिम की यात्रा करने के लिए स्वतंत्र थे।
155 किलोमीटर लंबी (96.3 मील लंबी) कंक्रीट और कंटीले तारों की संरक्षित सीमा से घिरा, बर्लिन के पश्चिम क्षेत्र में नागरिक कम्युनिस्ट जीडीआर के बीच में स्वतंत्रता के एक द्वीप में रहते थे।
यह साम्यवाद और पूंजीवाद के बीच लड़ाई के लिए पूर्व और पश्चिम के बीच विभाजन का वैश्विक प्रतीक था: बर्लिन की दीवार, जिसे जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (GDR) की तानाशाही द्वारा, 1961 में पूर्वी जर्मनी के रूप में जाना जाता है।
बैर्नाउअर श्ट्रासे पर वॉल के हिस्से रखे हैं और करीब 1.4 किलोमीटर की दूरी तक ये दिखाया गया है कि बॉर्डर की किलेबंदी कैसे की जाती थी। दीवार पार कर पूर्वी जर्मनी से भागने की कोशिश में मारे गए लोगों को भी यहां श्रद्धांजलि दी गई है।
किल ट्रैक पर चल कर बर्लिन शहर के मध्य की ओर बढ़ते हुए श्प्रे नदी और उसके आसपास स्थित सरकारी इलाके में ही ब्रांडेनबुर्ग गेट है। विभाजक दीवार खड़ी होने के बाद बर्लिन का यह मशहूर प्रतीक 'नो-मैन्स लैंड' में बनाया गया था। हालांकि दीवार के कारण पश्चिमी जर्मनी से तो एक तरह से कट ही गया था।
स्टोन पर ऐसी लकीरें बनी हैं जिनसे दर्शक बर्लिन की दीवार की सटीक लोकेशन जान सकें। शहर के बीच से होकर गुजरने वाली दीवार की करीब 40 किलोमीटर की लंबाई को ऐसे दर्शाया गया है। ज्यादातर पूर्वी और पश्चिमी जर्मनीवासी 9 नवंबर 1989 को गिराई गई इस दीवार का नामोनिशान तक मिटा देना चाहते थे।
बैर्नाउअर श्ट्रासे पर वॉल के हिस्से रखे हैं और करीब 1.4 किलोमीटर की दूरी तक ये दिखाया गया है कि बॉर्डर की किलेबंदी कैसे की जाती थी। दीवार पार कर पूर्वी जर्मनी से भागने की कोशिश में मारे गए लोगों को भी यहां श्रद्धांजलि दी गई है।
बर्लिन को चला रहे चारों मुल्कों के बीच इस बात पर भी रजामंदी हुई थी कि शहर में उनके नियंत्रण वाले इलाकों की सीमाएं खुली रखी जाएंगी। लेकिन ये शर्त पूर्वी जर्मनी से पलायन को सहूलियत ही दे रही थी।
डॉक्टर, प्रोफ़ेसर और इंजीनियर जिस तरह से पूर्वी जर्मनी छोड़कर पश्चिम की तरफ़ जा रहे थे, इसे देखते हुए 1958 के बाद कम्युनिस्ट प्रशासन के कान खड़े होने शुरू हो गए। एक ही साथ सख्ती और नरमी बरतने की नीति पूर्वी जर्मनी छोड़ने वाले लोगों को रोकने से नाकाम हो गई थी।
साल 1948 में एक अलग देश वेस्ट जर्मनी को अस्तित्व में लाने की कोशिशें शुरू हुईं और स्टालिन को इस पर एतराज था। स्टालिन ने बदला लेने के लिए उसके सेक्टर से लगने वाले पश्चिमी बर्लिन के हिस्सों को वेस्ट जर्मनी से काट दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के ख़त्म होने के बाद बर्लिन शहर की अजीबोगरीब स्थिति बन गई थी। ये टापू जैसे एक शहर में तब्दील हो गया था जिस पर चार मुल्कों का कब्ज़ा था। हर एक मुल्क ने बर्लिन को अपने-अपने सेक्टरों में बांट रखा था। ये चारों मुल्क थे सोवियत संघ, अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस।
एक बार फिर शहर में प्रवेश करते हुए चेरी के पेड़ों की कतारें आपका स्वागत करेंगी। पान्को में यह सबसे खूबसूरत नजारा अप्रैल के अंत में दिखता है। यहां के करीब 10,000 पेड़ जापान ने भेंट किए थे जिससे "लोगों के दिलों को शांति मिले।" पूर्व दीवार के कई हिस्सों में इन पेड़ों को लगाया गया। यह एवेन्यु बोएजेब्रुके के पास है जो कि दीवार गिरने के दिन खुलने वाली सबसे पहली क्रॉसिंग थी।
इस ट्रेल का बहुत बड़ा हिस्सा जंगलों के बीच से होकर गुजरता है। इससे बर्लिन शहर और आसपास की हरियाली पर भी ध्यान जाता है। हावेल नदी के किनारे पर स्थित ये पूर्व वॉच टावर बर्लिन से करीब 20 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में हैं। यहां दीवार और उसके इस शहर पर असर के इतिहास को प्रदर्शित करता एक छोटा सा संग्रहालय है, जहां प्रवेश शुल्क भी नहीं लगता है।
शहरी हिस्से से बाहर निकलने पर साइकिल के रास्ते आप बर्लिन के उपनगरीय इलाके में पहुंचते हैं। पॉट्सडाम पहुंचने से ठीक पहले ही यह पुल आता है। शीतयुद्ध काल में इसी पुल पर जासूसों की अदलाबदली हुआ करती थी। सन 1962 में यहां एक केजीबी एजेंट को एक अमेरिकी पायलट के बदले सौंपा गया, जिसे स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म "ब्रिज ऑफ स्पाइज" में भी दिखाया गया है।
बर्लिन की दीवार पर निगरानी करने के लिए उसके आसपास 300 से भी अधिक वॉच टावर बनाए गए थे. बॉर्डर गार्ड्स यहीं से नजर रखते थे कि कहीं कोई पूर्वी जर्मनी से भागने की कोशिश तो नहीं कर रहा. अब कुछ ही वॉच टावर बचे हैं. जैसे कि पॉट्सडामर प्लात्स के पास खड़ा ये टावर. पहले काफी चौड़े वर्गाकार टावर बनते थे लेकिन 1966 से ऐसे मशरूम के आकार के टावर बनने लगे.
पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के बीच का सबसे प्रसिद्ध क्रॉसिंग पॉइंट चेकपॉइंट चार्ली है. पर्यटक यहां रुककर इन सैनिक कॉस्ट्यूमों में सजे एक्टरों के साथ तस्वीरें जरूर लेते हैं. गौर कीजिए सिपाही के हाथ में पकड़ी तख्ती पर क्या लिखा है - "यू आर लीविंग द अमेरिकन सेक्टर." यहां रेड आर्मी की हैट या गैस मास्क जैसे प्रतीक भी बिकते हैं. इसी कारण कई लोग इसे कोल्ड वॉर डिज्नीलैंड भी कहते हैं.
कॉबलस्टोन पर ऐसी लकीरें बनी हैं जिनसे दर्शक बर्लिन की दीवार की सटीक लोकेशन जान सकें। शहर के बीच से होकर गुजरने वाली दीवार की करीब 40 किलोमीटर की लंबाई को ऐसे दर्शाया गया है। ज्यादातर पूर्वी और पश्चिमी जर्मनीवासी 9 नवंबर 1989 को गिराई गई इस दीवार का नामोनिशान तक मिटा देना चाहते थे।