चीन का दावा है कि वह अंतरिक्ष में एक सौर ऊर्जा प्‍लांट लगाने की तैयारी में है। इससे एक पूरे शहर को रोशन करने के लिए पर्याप्‍त बिजली धरती पर भेज जा सकेगी। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर इसकी तकनीकी चुनौतियों से वैज्ञानिक पार पा सके तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। प्रोजेक्‍ट सफल हुआ तो अभी ऊर्जा के लिए मुख्‍यत: धरती के स्‍त्रोतों पर निर्भर दुनिया को एक विकल्‍प मिलेगा। हालांकि इस कदम से वायु प्रदूषण और ग्‍लोबल वार्मिंग बढ़ने का खतरा भी जताया जा रहा है। इस नई तकनीक में माइक्रोवेव्‍स या लेजर के जरिए ऊर्जा को धरती पर भेजा जाएगा। चीन एकेडमी ऑफ स्‍पेस टेक्‍नोलॉजी के रिसर्चर पांग झिहाओ ने CNN से कहा कि इस प्रक्रिया के इंसानों, पौधों और जानवरों पर होने वाले संभावित दुष्‍प्रभावों की जांच जरूर होनी चाहिए।

चीन की सरकारी एजंसी एयरोस्‍पेस साइंस एंड टेक्‍नोलॉजी कॉर्पोरेशन को उम्‍मीद है कि वह 2050 तक पूरी तरह से सक्रिय सोलर स्‍पेस स्‍टेशन तैयार कर लेगा। चीन ने 2020 तक अक्षय ऊर्जा के क्षेत्रों- सोलर, वायु, हाइड्रो और न्‍यूक्लियर में 367 बिलियन डॉलर (2,59,97,91,30,00,000) का निवेश करने का संकल्‍प लिया है।

इंसानी सभ्‍यता के पास अंतरिक्ष की सौर ऊर्जा के रूप में सबसे बड़ा ऊर्जा स्‍त्रोत मौजूद है। अमेरिका की नेशनल स्‍पेस सोसाइटी के अनुसार, इसका ठीक इस्‍तेमाल कर हम धरती के हर एक व्‍यक्ति की ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा को धरती पर लाने के प्रयास 1960 से चल रहे हैं, मगर तकनीकी दिक्‍कतों की वजह से अब तक यह संभव नहीं हो सका है।

कैसे काम करेगा यह प्‍लांट: पूरे प्‍लांट के अलग-अलग हिस्‍से जैसे सोलर पैनल्‍स और बिजली को ट्रांसमिशन के लिए तैयार करने वाले उपकरणों को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इसके बाद उन्‍हें वहीं पर असेंबल किया जाएगा। असेंबली के बाद सोलर प्‍लांट को धरती पर मौजूद एक रिसीविंग स्‍टेशन के ऊपर भू-स्थिर कक्षा में स्‍थापित कर दिया जाएगा। सोलर प्‍लांट बिजली को लेजर या माइक्रोवेव्‍स के जरिए धरती पर भेजेगा, जहां इसे बिजली में परिवर्तित कर ग्रिड के जरिए ट्रांसमिट कर दिया जाएगा।