Celebrating Pride Google Doodle: गूगल ने आज डूडल बनाया है। आज का डूडल बहुत खास है, यह अपने डिजाइन से लेकर हिस्ट्री तक में खास है। इसमें LGBTQ समुदाय का पिछले 50 साल का सफर दिखाया है। आज प्राइड परेड के 50 साल पूरे हो गए हैं। गूगल ने डूडल में कई स्लाइड्स दिए हैं। इसमें 1969 से लेकर 2019 तक के सफर को दिखाया है। इसमें पहली स्लाइड 1969 की है। दूसरी स्लाइड 1979 की है। तीसरी स्लाइड 1989 की है, चौथी स्लाइड में 1999 के संघर्ष को दिखाया गया है। इसके बाद 2009 की लड़ाई को दिखाया गया है और सबसे आखिरी स्लाइड में 2019 को दिखाया गया है।
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आइडेंटिटी के हक की लड़ाई अमेरिका से शुरू हुई थी. क्योंकि तब अमेरिका में भी समलैंगिकता गुनाह हुआ करता था। प्राइड के 50 साल होने पर इस साल न्यूयॉर्क अंतर्राष्ट्रीय एलजीबीटी प्राइड परेड की मेजबानी करेगा, जिसे स्टोनवैल 50 के रूप में जाना जाता है। प्राइड परेड के कई नाम हैं। इसे गे प्राइड, प्राइड वॉक, प्राइड मार्च, गे परेड, गे वॉक, समलैंगिक और ट्रांसजेंडरों का जुलूस भी कहा जाता है। इसमें हिस्सा लेने वाले मानते हैं कि परेड में शामिल होने वाले गे लोगों को मुंह न छिपाना पड़े और वे सिर उठाकर समाज का हिस्सा बन सके।


02 नवंबर, 1969 को क्रेग रोडवेल, उनके साथी फ्रेड सार्जेंट, एलेन बिरॉडी और लिंडा रोड्स ने होमोफाइल संगठनों के पूर्वी क्षेत्रीय सम्मेलन (ईआरसीएचओ) की बैठक में एक प्रस्ताव के माध्यम से न्यूयॉर्क शहर में होने वाले पहले गौरव मार्च का प्रस्ताव रखा। तब से शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने प्राइड मूवमेंट को आगे बढ़ाया और यह सीमाओं के पार फैल गया।
2017 में, Google ने दुनिया भर में होने वाले गे प्राइड मार्च को प्रदर्शित करने के लिए Google मैप्स पर सड़कों को इंद्रधनुष के रंगों से रंगा हुआ दिखाया गया था।
1969 के स्टोनवेल दंगों की याद में जून महीने को 'एलजीबीटी प्राइड मंथ' के रूप में याद किया जाता है। एलजीबीटी के लोगों पर दुनिया भर में प्रभाव पड़ने की पहचान करने के लिए इस महीने के दौरान कई प्राइड इवेन्ट्स आयोजित किए जाते हैं।
जिसके बाद ये बड़े बदलाव का प्रतीक बन गया। न्यूयॉर्क में ये प्राइड परेड खास होगी क्योंकि LGBTQ+ के 50 साल पूरे हो गए हैं। भारत में भी समलैंगिकता को मान्यता देते हुए अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए भारत में समलैंगिकता को मान्यता दी थी।
भेदभाव के खिलाफ सबसे पहली आवाज अमेरिका में उठी थी। 1950 में ही लड़ाई की शुरुआत हो चुकी थी। 1960 में आवाज बढ़ गई और दुनिया की नजरों में आ गए। आवाज तेज होने के बाद समलैंगिक और ट्रांसजेंडर सड़कों पर उतर गए और दुनिया की पहली प्राइड परेड की।
न्यूयॉर्क में क्रिस्टोफर स्ट्रीट पर परेड का आयोजन होता है। इस परेड में LGBTQ+ के लोग हिस्सा लेते हैं। सिर्फ न्यूयॉर्क में ही नहीं, बल्कि कई देशों में परेड निकाली जाती है। LGBTQ+ लैंगिकता को हर जगह नकारा गया, जिसके लिए इस समुदाय को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। कई देशों में तो इसे स्वीकार कर लिया गया। लेकिन अभी भी कई देशों में इसे अपराध माना जाता है।