Soorma Movie Review: सूरमा की कहानी की शुरूआत होती है साल 1994 के शाहाबाद, इस जगह को देश की हॉकी की राजधानी माना जाता है। एक छोटा सा कस्बा है यहां पर रहने वाला हर लड़का या लड़की इसी हॉकी की रेस को जीतना चाहता है। यहां के युवा संदीप सिंह (दिलजीत दोसांझ) भी इन्हीं लोगों में से एक हैं लेकिन कोच के सख्त होने के कारण आखिरकार उनकी जवाब दे देती है और वह हॉकी की तरह मुड़ कर नहीं देखना चाहते। टीनेज तक उनकी लाइफ से हॉकी गायब रहती है लेकिन जब उनके जीवन में तापसी पन्नू यानी की हरप्रीत की एंट्री होती है तो उन्हें उससे प्यार हो जाता है। हरप्रीत फिर से उनके अंदर हॉकी के जूनून को पैदा करती है और एक समय ऐसा आता है कि संदीप के जीवन का मकसद एक हॉकी प्लेयर बनना बन जाता है।

निर्देशक शाद अली की फिल्म के पहले पार्ट में संदीप सिंह के हॉकी प्लेयर बनने की कहानी को दिखाया गया है। लेकिन कहानी के इंटरवेल के समय फिल्म की कहानी काफी सीरियस हो जाती है। फिल्म में ऐसे कई मौके आते हैं जब आप भावुक हो जाते हैं। दिलजीत के अभिनय की बात करें तो उनकी एक्टिंग बेहतरीन है। वह अपनी एक्टिंग से अपने रोल के हर भाव को महसूस कराते हैं। इसके पहले उनकी तारीफ फिल्म उड़ता पंजाब के लिए भी हुई थी। वहीं तापसी पन्नू ने भी अपनी एक्टिंग में बेस्ट परफॉर्मेंस दिया है। सपोर्टिंग कास्ट के रूप में अंगद बेदी जिन्होंने दिलजीत के बड़े भाई का किरदार निभाया है, जबरदस्त अभिनय करते नजर आए हैं। हालांकि म्यूजिक की बात करें तो फिल्म का कोई भी गाना खास नहीं है।

फिल्म की कहानी में टर्निंग प्वाइंट तब आता है जब हॉकी प्लेयर संदीप सिंह के साथ एक मैच खेलने के बाद घर वापसी के वक्त हादसा हो जाता है। इस हादसे में संदीप की कमर में गोली लग जाती है जिसके बाद संदीप का कमर के नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर देता है। यही फिल्म सूरमा की कहानी आगे बढ़ती है। संदीप सिंह की जिंदगी में कब, क्यों, कैसे और क्या हुआ यदि आप जानना चाहते हैं तो आपको सिनेमाघरों का रूख्र करना पड़ेगा। फिल्म को क्रिटिक्स ने पांच में 3.5 स्टार्स दिए हैं।