निर्देशक- महेश भट्ट
कलाकार – मानव भारद्वाज, प्रियंका पांचाल, मन बग्गा, सिमरन दीप, तरुण भार्गव, आशीष चौहान, निर्मल कुमार पंत।
इस फिल्म के निर्देशक महेश भट्ट के नाम से कुछ लोगों को ये गलतफहमी हो सकती है कि ये आलिया भट्ट के पिता मशहूर फिल्म निर्दशक-लेखक महेश भट्ट हैं। `द साइलेंट हीरोज’ फिल्म के निर्देशक महेश भट्ट एक अलग इंसान हैं और पत्रकार रह चुके हैं। उनका दावा है कि ये दुनिया की ऐसी पहली फिल्म हैं, जिसमें सचमुच के तेरह मूक और सुन पाने में असमर्थ बच्चों ने काम किया है। ये एक ऐसी फिल्म है जो लोगों में ये भावना भरना चाहती है कि विकलांगता नाम की चीज सिर्फ मन का वहम है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये एक सकारात्मक सोच वाली फिल्म है।
फिल्म की कहानी उत्तराखंड की पृष्ठभूमि में बुनी गई है। मूक और श्रवणशक्तिहीन बच्चों का एक स्कूल है, जिसकी एक अध्यापिका गौरी सिंह (प्रियंका पांचाल) इसी इलाके के पूर्व सेना अधिकारी कपिल मल्होत्रा (मानव भारद्वाज) से मिलती हैं। कपिल मल्होत्रा पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देनेवाला एक मशहूर शख्स है। गौरी सिंह का मानना है कि अगर उसके स्कूल के कुछ बच्चों को पर्वतारोहण का प्रशिक्षण दिया जाए तो न सिर्फ उनके अंदर की झिझक कम होगी बल्कि समाज में भी उनको सम्मान मिलेगा। कपिल मल्होत्रा इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है और बच्चों का प्रशिक्षण शुरू होता है। हालांकि स्कूल में ऐसे लोग भी हैं जो ये मानते हैं कि ये ठीक नहीं हो रहा है, क्योंकि ऐसे विशेष बच्चों को इस तरह के चुनौतीपूर्ण अभियान का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए। लेकिन स्कूल के प्रिसिंपल कर्नल थापा (निर्मल कुमार पंत) बच्चों को पर्वतारोहण पर जाने के लिए राजी हो जाते हैं। कपिल मल्होत्रा तेरह बच्चों को नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग लेकर जाता है और उनको प्रशिक्षित करना शुरू करता है। क्या ये बच्चे पर्वतारोहण जैसे मुश्किल काम को अंजाम दे पाएंगे? इसी सवाल को लेकर पूरी फिल्म बनी है। फिल्म में हिमालय के प्राकृतिक सौंदर्य को दिखाया गया है।
इसमें संदेह नहीं कि ये फिल्म समाज के भीतर उन लोगों के लिए खास तरह की संवेदनशीलता जगानेवाली होगी, जिनको विकलांग की श्रेणी में रखा जाता है। दरअसल, विकलांगता कोई चीज नहीं होती। कुछ लोग जन्म से विशेष होते हैं और ऐसी समझ रखकर उनके साथ सामाजिक व्यवहार होना चाहिए। यही इस फिल्म का संदेश भी है। निर्देशक के लिए सबसे कठिन काम ये होगा कि उन्होंने तेरह ऐसे बच्चों को इस फिल्म में लिया, जिनसे अभिनय कराने के लिए संवाद स्थापित करना बड़ा ही मुश्किल काम रहा होगा। उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और ऐसी फिल्म बनाई, जो नए तरह की है। विशेष बच्चों को केंद्र में ऱखकर पहले भी फिल्में बनी हैं पर किसी में किसी विशेष बच्चे ने अभिनय नहीं किया। फिल्म को कुछ अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी दिखाया गया है।