निर्देशक– मधुरीता आनंद

कलाकार- ऋद्धिमा सूद, सुमित व्यास, मीनु हुडा

एक अच्छे विषय पर कमजोर फिल्म कैसे बनाएं, इसका सटीक उदाहरण है कजरया। इसकी पृष्ठभूमि हरियाणा के झज्‍झर जिले की है, जहां लड़कियों का जनसंख्‍या अनुपात लगातार कम होता जा रहा है। फिल्म में मीरा (ऋद्धिमा सूद) नाम की एक पत्रकार है, जो कहानी में कब अखबार की रिपोर्टर हो जाती है और कब टीवी चैनल की, इसका अनुमान लगाना कठिन है। वो गांव में खबर के सिलसिले में जाती है। वहां पता चलता है कि कजरया (मीनू हुड्डा) नाम की औरत एक धार्मिक अनुष्ठान के तहत नवजात बालिकाओं की हत्या करती है और गांव वाले ये मानते हैं कि कजरया पर काली मां सवार होती हैं। मीरा की इस खबर से तहलका मच जाता है और कजरया को फांसी की सजा सुनाई जाती है। निर्देशक ने ये बताने की कोशिश की है कि हत्या सिर्फ कजरिया नहीं करती है, बल्कि सारा समाज करता है। पर ये सब इतने लचर ढंग से बताया गया है कि दर्शकों को कोफ्त होती है। फिल्म में आप देखते हैं कि गिरफ्तार होकर भी कजरया थाने में ही रहती है, जेल नहीं जाती और उसे अदालत में नहीं, बल्‍क‍ि उप जिलाधिकारी के यहां पेश किया जाता है। इसी तरह के कई तर्कहीन दृश्य इसमें हैं। फिल्म का संपादन भी बहुत खराब है।