सावन माह 2019: हिंदू देवी देवताओं में भगवान शिव की वेशभूषा सबसे अलग है। अनादि शंकर ने अपने शरीर पर कई तरह की चीजें धारण की हुई हैं। जैसे माथे पर मां गंगा, हाथ में डमरु, गले में सांप, त्रिशूल, तीसरी आंख, रुद्राक्ष, बाघ की खाल और चंद्रमा इत्यादि। भोलेनाथ के इन सभी प्रतीकों को धारण करने के पीछे कुछ न कुछ रहस्य छिपा हुआ है। यहां जानिए इन प्रतीकों का क्या महत्व है। माथे पर गंगा: हिंदू धर्म में मां गंगा सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। जिसमें डुबकी लगाने से समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथा अनुसार गंगा नदी का स्त्रोत शिव है। शिव की जटाओं से स्वर्ग से मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था। कहा जाता है कि जब पृथ्‍वी की विकास यात्रा के लिए गंगा का आव्हान किया गया तो पृथ्वी की क्षमता इनके आवेग को सहने में असमर्थ थी। ऐसे में शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया। जो यह दर्शाता है कि आवेग की अवस्था को दृढ़ संकल्प के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है।

चंद्रमा: चंद्र को मन का कारक ग्रह माना जाता है। भगवान शिव अर्धचन्द्र को आभूषण की तरह अपनी जटाओं में धारण करते हैं। इसलिए इन्हें चंद्रशेखर और सोम भी कहा गया है| चन्द्रमा आभा, प्रज्वल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता है, जो कि मन के शुभ विचारों से उत्पन्न होते हैं।

गले में सर्प माला: भगवान शिव के गले में नाग पहनने के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब अमृत मंथन हुआ, तब अमृत कलश से पहले निकले विष को उन्होंने अपने कंठ में रखा था। जो भी विकार की अग्नि होती है, उन्हें दूर करने के लिए शिव ने विषैले नागों की माला पहनी।

त्रिशूल: शिव अपने हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं जो मानव शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों बायीं, दाहिनी और मध्य का सूचक है| इसके अलावा त्रिशूल इच्छा, लड़ाई और ज्ञान का भी प्रतिनिधित्व करता है| कहा यह भी जाता है देवी जगदंबा की परम शक्ति त्रिशूल में समाहित है। यह संसार का वह तेजस्वी अस्त्र है जिसने युग-युगांतर में सृष्टि के विरुद्ध सोचने वाले राक्षसों को खत्म किया है। इसमें राजसी, सात्विक और तामसी तीनों ही गुण समाहित हैं।

तीसरी आंख: शिव के क्रोध के समय उनकी तीसरी आंख खुलती है। जिसके खुलने से प्रलय आ जाता है। शिव का तीसरा नेत्र सामान्य परिस्थितियों में भी विवेक के रूप में जाग्रत रहता है। इसीलिए तीसरे नेत्र को ज्ञान और सर्व-भूत का प्रतीक कहा जाता है। यह अपने आप में इतना सशक्त है कि काम वासना जैसे गहन प्रकोप भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

डमरु: शिव के हाथ में डमरु रहता है। कहा जाता है जब डमरू हिलता है तो इससे ब्रह्मांडीय ध्वनि “नाद” उत्पन्न होता है। डमरु को संसार का पहला वाद्य माना गया है। इसके स्वर से वेदों के शब्दों की उत्पत्ति हुई इसलिए इसे नाद ब्रहम कहा गया है। शास्त्रों अनुसार “नाद”  सृजन का स्रोत है।

रुद्राक्ष: माना जाता है इसकी उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई थी। यह एक फल की गुठली है। जिसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। ‘रूद्राक्ष’ शब्द, ‘रूद्र’ (शिव का नाम) और ‘अक्श’ अर्थात आँसू से बना है। एक पौराणिक कहानी अनुसार जब भगवान शिव ने गहरे ध्यान के बाद अपनी आँखें खोली, तो उनकी आँख से आंसू की बूंद पृथ्वी पर गिर गयी, जिससे पवित्र रूद्राक्ष के पेड़ की उत्पत्ति हुई।

बाघ की खाल: बाघ को शक्ति और सत्ता का प्रतीक माना गया है। भगवान शिव द्वारा इसे धारण करना यह दर्शाता है कि वह सभी शक्तियों से ऊपर हैं। यह निडरता और दृढ़ता का प्रतीक भी है। बाघ ऊर्जा का भी प्रतिनिधित्व करता है|