आप मृत्यु के अहसास से डर जाते हो, भयभीत हो जाते हो? आपका ये भय छद्म है। मिथ्या है। असत्य है। सच तो ये है कि आपकी मृत्यु मुमकिन ही नहीं है। संभव ही नहीं है। जिसे आप मृत्यु समझते हो, वो मृत्यु नहीं, सिर्फ ‘एक’ जीवन का विराम है, केवल तुम्हारे दैहिक जीवन का अंत है। वो मात्र आपकी देह का अवसान है, आपका नहीं। आपने कल एक कुर्ता खरीदा। उसे खूब पहना। आज वो कुर्ता फट गया। वो फटा है, आप नहीं फटे। पर आप अनुभव कर रहे हो कि आप फट गए। आप मिट गए। आपका ये स्वयं के फट जाने का खयाल एक इल्यूजन है। भ्रम है। फटा तो कपड़ा ही है, कुर्ता ही है। आपके वार्डरोब में और भी कपड़े हैं। इस वस्त्र के पहले भी आपके तन पर वस्त्र था। इस वस्त्र के बाद भी रहेगा।
इसलिए आपकी अवधारणा सत्य नहीं है। आपकी एक जीवन यात्रा पूर्ण तो होगी पर आपकी मौत तो फिर भी न हो सकेगी। क्योंकि आप तो चेतना हो, यहां तो किसी जड़ की भी मौत भी संभव नहीं है। आप एक जर्रे को, रेत के कण को भी यदि चाहोगे, तो भी मिटा न सकोगे। अधिक से अधिक उसका रूप बदल दोगे। जब तुम जड़ को भी ना मार सकोगे, या जड़ की भी मौत नहीं होगी तो चेतना की मौत संभव कैसे है। मृत्यु सिर्फ तन का परिवर्तन है, देह का बदलाव। इससे ज्यादा कुछ नहीं। पर आप तो मृत्यु के नाम से ही घबरा जाते हो..। क्योंकि आपने जीवन भर स्वयं के और स्वयं की जीवात्मा के कल्याण के लिए तो कुछ किया ही नहीं..। केवल नकली चीजों में आपने अपना जीवन व्यर्थ कर दिया। बर्बाद कर दिया। नष्ट कर दिया। इसलिए आप तो घबराओगे ही…घबराना भी चाहिये। अब करोगे क्या? अगर ये कुर्ता फटा तो इसमें टंके बटन, कॉलर, आस्तीन और धागे, सब बेकार हो जाएंगे। यानि आपका सारा माल मसाला तो व्यर्थ हो जायेगा।
आपकी चेतना फुर्र होते ही खूबसूरत देह मुर्दा घोषित कर दी जाएगी। सारा माल असबाब यहीं पड़ा रह जाएगा। क्योंकि ये तो जड है। चेतना निकलते ही जड़ अर्थ हीन हो जाता है। सारी संपत्ती व्यर्थ हो जाती है और बड़े प्यार से संवारी गई यह देह यहीं छूट जाती है.. रह जाती है.. नष्ट हो जाती है.. सड़ जाती है।
जो कुछ जोड़ा.. जो कुछ कमाया.. जो कुछ जमा किया.. मेहनत से या उल्टा सीधा करके.. सब यही छूट जायेगा और कर्म के फल चिपक जाएंगे। उन्हें हासिल करने के लिए जो कर्म किए उन कर्मों का फल चिपक जाएगा, जिसे हजारों लाखों करोड़ों जन्मों मे भोगना पड़ेगा..। ना भोगने का कोई उपाय, नहीं, कोई मार्ग नहीं, कोई रास्ता नहीं। आंखें मूंद लेने से सत्य नहीं बदलेगा बाबू। मैं आपकी आगे की यात्रा को लेकर इतना परेशान हूं, पर क्या आपको मेरी ये चिन्ता समझ में आती है?

