Hartalika Teej 2021 Date: हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। जो इस बार 9 सितंबर को पड़ रहा है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। ये व्रत शादीशुदा महिलाओं के साथ ही कुमारी कन्याओं द्वारा भी रखा जाता है। विवाहित स्त्रियां इस व्रत को पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं और कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए। यहां आप जानेंगे इस व्रत के नियम।

हरतालिका तीज व्रत के नियम: हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला रखा जाता है। कई जगह इस व्रत के अगले दिन जल ग्रहण किया जाता है। लेकिन कुछ लोग व्रत वाले दिन पूजा के बाद ही जल ग्रहण कर लेते हैं। हरतालिका तीज व्रत एक बार शुरू करने के बाद छोड़ा नहीं जाता है। इसे प्रत्येक वर्ष विधि विधान से रखा जाता है। इस व्रत में सोते नहीं हैं। रात भर जागरण किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं दुल्हन की तरह सजती संवरती हैं।

हरतालिका तीज व्रत की पूजा विधि: इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी से प्रतिमा बनाई जाती है। आप चाहें तो शिव परिवार की बनी बनाई प्रतिमा की भी पूजा कर सकते हैं। पूजा स्थल पर एक चौकी रखें। उस पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। फिर भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का पूजन करें। माता पार्वती को सुहाग की वस्तुएं चढ़ाएं। शिव जी को धोती या फिर अंगोछा चढ़ाया जाता है। सुहाग सामग्री व्रत के अगले दिन ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान कर देनी चाहिए। व्रत पूजन के समय हरतालिका तीज व्रत की कथा जरूर सुननी चाहिए। व्रत के अगले दिन सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाकर ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोल लेना चाहिए। (यह भी पढ़ें- ये छोटी-छोटी गलतियां घर में आर्थिक तंगी लाने का करती हैं काम)

हरतालिका तीज व्रत का महत्व: इस व्रत को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मान्यता है माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। वर्षों तपस्या करने के बाद भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि और हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि भर भजन कीर्तन किया। माता पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। मान्यता है जिस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था उस दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। (यह भी पढ़ें- सितंबर में कैसी रहेगी शनि की चाल, जानिए किन्हें शनि साढ़े साती या ढैय्या से मिलेगी राहत)