Vidur Niti : विदुर नीति में विदुर जी के विचार होते हैं। कहते हैं कि महाभारत काल में विदुर जी को सबसे बुद्धिमान माना जाता था। विदुर जी सभी विषयों पर अपने विचारों को लेकर बहुत स्पष्ट थे। उनका कहना था कि हर व्यक्ति को अलग-अलग विषयों पर अपने विचारों को स्पष्ट रूप से रखना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में आने वाली आधी परेशानियों का अंत हो जाता है। विदुर जी का मानना था कि हर पुरुष में 8 गुण होने चाहिए। जिनसे उसकी शोभा बढ़ती है। वह कहते हैं –

अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति
प्रज्ञा च कौल्यं च दसं श्रुतं च।
पराक्रमश्रावबहुभाषिता
दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।।

इन 8 गुणों में से पहला गुण है बुद्धि। विदुर जी कहते हैं कि हर पुरुष में बुद्धि होनी चाहिए क्योंकि बुद्धि की सहायता से ही बिगड़े हुए कामों को ठीक किया जा सकता है। बुद्धि से ही पुरुष धन कमाने योग्य बनता है।

विदुर जी दूसरा गुण कुलीनता बताते हैं। उनका मानना है कि पुरुष का कुलीन होना बहुत जरूरी है। जो पुरुष कुलीन होता है वही जीवन में सरलता से आगे बढ़ पाता है।

तीसरा गुण है दम। विदुर नीति में विदुर जी कहते हैं कि कोई भी पुरुष दम के बिना पुरुषत्व को साबित नहीं कर सकता है। हर पुरुष में दम होना चाहिए। दम की मदद से ही वह इस कठोर समाज का सामना किया जा सकता है।

विदुर नीति में चौथा गुण शास्त्र ज्ञान बताया गया है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति को शास्त्रों का ज्ञान होता है। वह अपने कुल का नाम रोशन करता है। ऐसा व्यक्ति प्रणाम के योग्य होता है। शास्त्र का ज्ञान जिसे होता है। उसे दुनिया भर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

विदुर जी कहते हैं कि पांचवा गुण पराक्रम है। हर पुरुष में पराक्रम का होना बहुत जरूरी है। जिस पुरुष में पराक्रम नहीं होता है। वह अपने कुल का नाम मिट्टी में मिला देता है। पुरुष का पराक्रम ही उसकी पहचान होता है।

छठा गुण बताते हुए विदुर जी कहते हैं कि पुरुषों को कम बोलना चाहिए। जो पुरुष बहुत ज्यादा बोलते हैं। वह समाज और घर-परिवार में अपना सम्मान खो देते हैं। इसलिए सभी पुरुषों को ज्यादा नहीं बोलना चाहिए।

सातवां गुण बताते हुए विदुर जी कहते हैं कि असली पुरुष वही है जो यथाशक्ति दान दें। पुरुष जो भी धन कमाता है। उस धन को पवित्र करने के लिए उसका एक अंश उसे जरूर दान करना चाहिए।

आठवां और अंतिम गुण बताते हुए विदुर जी कहते हैं कि पुरुष को कृतज्ञ जरूर होना चाहिए। आपके पास जो भी है, जितना भी है और जिस भी अवस्था में है। उसके लिए हमेशा ईश्वर के समक्ष कृतज्ञ भाव रखो। कृतज्ञता मनुष्य की गति करवाती है।