वट सावित्री व्रत हिंदुओं का त्यौहार है, जिसे शादीशुदा महिलाएं अपने पति की सेहत और कामयाबी के लिए रखती हैं। वट पूर्णिमा को वट सावित्री भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लेकर आई थीं। इस बार वट सावित्री की पूजा का मुहूर्त 8 जून शाम 4.15 से लेकर 9 जून शाम 6.30 बजे तक है। हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक यह पूजा ज्येष्ठ के महीने में पूर्णिमा वाले दिन होती है। इस त्यौहार को पश्चिम भारत के गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में मनाया जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं व्रत रखती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। इसके साथ ही लाल धागा लेकर वट के पेड़ यानी बरगद के पेड़ पर बांधते हुए 108 चक्कर लगाती हैं।
वत सावित्री व्रत की कथा-
इस व्रत का नाम सावित्री के नाम पर पड़ा जो अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से लड़ी थी। वट का अर्थ है बरगद जहां पर सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस पाए थे। यह कहानी महाभारत में भी बताई जाती है जिसमें सावित्री एक सुंदर और समझदार कन्या थी। जिसके पिता ने उसे खुद वर चुनने की आज्ञा दी थी। एक दिन जंगल में उसे सत्यवान मिले जो अपने अंधे माता-पिता को अपने कंधों पर लेकर जा रहे थे, इस पर मुग्ध होकर सावित्री ने सत्यवान से विवाह कर लिया। नारद ने उन्हें एक दिन आकर बताया कि तीन दिन में उसके पति की मौत हो जाएगी। उस दिन से उसने अपने पति के लिए व्रत करना शुरू कर दिया।
एक दिन बरगद के पेड़ से लकडियां काटते हुए सत्यावान गिर गए, तब सावित्री ने देखा कि उसके पति की मृत्यु हो रही है और यमराज उनके प्राण लेकर जा रहे हैं। तब सावित्री यमराज का पीछा करती हुई चल पड़ी। यमराज ने उन्हें बहुत बार वापस जाने को कहा पर वह नहीं मानी। फिर यमराज ने उन्हें तीन वर मांगने को कहा जिससे वो वापस चली जाएं। सावित्री सुंदर होने के साथ समझदार थी, उन्होंने अपने पहले वर में अपने ससुराल की समृधि वापस मांगी। दूसरे वर में उन्होंने अपने पिता के लिए पुत्र की इच्छा करी, तीसरे वर में उन्होंने अपने लिए एक संतान का वर मांगा। सभी को यमराज ने मान लिया। फिर सावित्री ने कहा अपनी संतान के लिए मुझे मेरे पति ही चाहिए, इस पर यमराज सोच में पड़ गये और फिर हंसते हुए कहा कि जाओ अपने पति के शरीर के पास वो भी थोड़ी देर में उठ जाएंगे। इस तरह सावित्री ने अपने पति के प्राण वापस ले लिए।
सावित्री व्रत की विधि-
शादीशुदा महिलाएं सावित्री को देवी की तरह पूजती हैं। इस दिन महिलाएं सबसे पहले नहा कर नए रंगीन कपड़े पहनती हैं और वो जरूरी श्रृंगार करती हैं जो एक सुहागन के लिए आवश्यक होता है। एक पत्ता बरगद के पेड़ का लेकर अपने बालों में लगाती हैं। इसके अलावा 9 तरह के फल और फूल से सावित्री देवी की पूजा की जाती है। इसके साथ ही दाल, चावल, आम, केला और अन्य तरह के फलों से पूजा की जाती है और सावित्री की कथा पढ़ती और सुनती हैं। फिर उसके बाद उन फलों का प्रसाद लेती हैं। महिलाएं यह व्रत पति और घर के बड़ों का आशीर्वाद लेकर खोलती हैं।
