Tulsi Vivah 2019, Dev Uthani Ekadashi: देवउठनी एकादशी का दिन काफी शुभ माना जाता है। क्योंकि इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु पूरे चार महीनों के बाद अपनी योग निद्रा से जाग जाते हैं। मान्यता है कि माता लक्ष्मी के कहने पर भगवान विष्णु ने आषाढ़ माह की शुक्ल एकादशी से कार्तिक मास की एकादशी तक विश्राम करने का निश्चय किया था। देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु के जागते ही उनके शालिग्राम स्वरूप का विवाह तुलसी जी से कराया जाता है। जिसके बाद से शादी ब्याह के शुभ मुहूर्त भी शुरू हो जाते हैं। भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी जी की इस दिन विधि विधान पूजा की जाती है। जिसमें आरती जरूरी है।

तुलसी माता की आरती (Tulsi Mata Ki Aarti)

जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता ।।

सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता।।

बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता ।।

हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता ।।

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता ।।

हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता ।।

तुलसी विवाह की कथा (Tulsi Vivah Katha) : 

एक कथा के अनुसार एक जलंधर नामक राक्षस था जिसने चारों तरफ बड़ा उत्पात मचा रखा था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। जलंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा की गुहार लगाई। देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा का स्पर्श किया। जिससे वृंदा का पति जलंधर वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा ने यह देखा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। यह पत्थर शालिग्राम कहलाया। विष्णु ने कहा, ‘हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।’ बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।