आयुध पूजा नवरात्रि का एक अभिन्न अंग है। आयुध पूजा से मतलब अस्त्र-शस्त्र पूजन से है। इसे शस्त्र पूजन के अन्य नाम से अभी जाना जाता है। भारत में नवरात्रि के अंतिम दिन अस्त्र पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इसे आयुध पुजाई के नाम से अस्त्र-शस्त्र का पूजन किया जाता है। इसके अलावा केरल, उड़ीसा, कर्नाटक राज्यों में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में आयुध पूजा को खंडे नवमी के रूप में मनाया जाता है।

कब है आयुध पूजा: हिन्दू पंचांग के मुताबिक आयुध पूजा अश्विन मास नवमी या दशमी (दशहरा) के दिन मनाया जाता है। इस बार आयुध पूजा 07 अक्टूबर दिन सोमवार को देश के कई हिस्सों में मनाया जा रहा है। वहीं कुछ भागों में आयुध पूजा (शस्त्र पूजन) विजयदशमी (दशहरा), यानि 08 अक्टूबर को भी मनाया जाएगा। कर्नाटक में आयुध पूजा मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध के लिए उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

आयुध पूजा का शुभ मुहूर्त: आयुध पूजा के 07 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 05 मिनट तक है। जबकि दशहरा (विजय दशमी) पर आयुध (शस्त्र) पूजन के लिए शुभ मुहूर्त विजय मुहूर्त माना गया है। 08 अक्टूबर को विजय मुहूर्त दोपहर में 01 बजकर 33 मिनट से 03 बजकर 55 मिनट तक है।

मंत्र: जयदे वरदे देवि दशम्यामपराजिते। धारयामि भुजे दक्षे जयलाभाभिवृद्धये।। इस मंत्र के साथ देवी अपराजिता पूजन के बाद आयुध (शस्त्र) की पूजा करें।

आयुध पूजन का महत्व: कर्नाटक में, देवी दुर्गा द्वारा राक्षस राजा महिषासुर की हत्या के लिए उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि राक्षस राजा का वध करने के बाद, हथियारों को पूजा के लिए बाहर रखा गया था। इसलिए आयुध पूजन के दिन हथियारों (अस्त्र-शस्त्र) की पूजा की जाती है। जब नवरात्रि का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन दक्षिण भारतीय राज्यों में, जहां इसे व्यापक रूप से अयोध्या पूजा के रूप में मनाया जाता है। हालांकि पूजा की प्रक्रिया में थोड़ा बहुत अंतर होता है।