Govardhan Puja 2022, Date, Time, Shubh Muhurat, Puja Vidhi: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई देने वाले आंशिक सूर्य ग्रहण के कारण दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा नहीं मनाई जाएगी। चूंकि दिवाली इस साल 24 अक्टूबर को पड़ रही है, इसलिए गोवर्धन पूजा 25 अक्टूबर को होनी चाहिए। दूसरी ओर, गोवर्धन पूजा 25 अक्टूबर को नहीं होगी। गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को स्थानांतरित कर दी गई है। वर्ष का अंतिम सूर्य ग्रहण दिवाली के अगले दिन 25 अक्टूबर को लग रहा है। इस बार देश के कई हिस्सों में आंशिक सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा। बेंगलुरु, नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी से आंशिक सूर्य ग्रहण देखा जाएगा।

सूर्य ग्रहण के कारण नहीं मनाए जाएंगे त्योहार

गोवर्धन पूजा हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। हर साल दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। 24 अक्टूबर को पूरे देश में दिवाली का त्योहार मनाया गया है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण के कारण पूरे देश में 26 अक्टूबर को मनाई जाएगी। खंडग्रास सूर्य ग्रहण के कारण इस बार भगवान को अन्नकूट भी नहीं चढ़ाने देंगे। ऐसे में इस दिन गोवर्धन पूजा नहीं होगी और न ही ठाकुरजी अन्नकूट का आनंद लेंगे।

सूर्य ग्रहण और गोवर्धन पूजा की तिथि और समय

सूर्य ग्रहण शाम 4:29 बजे शुरू होगा और शाम 5:43 बजे तक चलेगा सूर्य ग्रहण सुबह 3:14 बजे शुरू होगा और 25 अक्टूबर को शाम 5:40 बजे समाप्त होगा। सूर्य ग्रहण के कारण 26 अक्टूबर गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर 2022 को प्रात: 6:26 से प्रातः 8:40 बजे तक प्रात:काल मुहूर्त में मनाई जाएगी और यह पूजा 2 घंटे 15 मिनट तक चलेगी।

भाई दूज 2022 की तिथि और समय

इस बार भाई दूज 26 अक्टूबर के दिन मनाया जाएगा जिस दिन गोवर्धन पूजा है। द्वितीया तिथि 26 अक्टूबर को दोपहर 02:42 बजे से शुरू हो रही है। इसका समापन 27 अक्टूबर को दोपहर 12:45 बजे होगा। क्योंकि यह तिथि दोनों दिन होने वाली है। इसलिए यह पर्व 26 और 27 दोनों तारीख को मनाया जा सकता है। आप अपनी सुविधा के अनुसार इनमें से किसी भी दिन भाई दूज मना सकते हैं। 26 अक्टूबर को शुभ मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 44 मिनट से 03 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। जबकि 27 अक्टूबर को शुभ मुहूर्त 11 बजकर 07 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक ही रहेगा।

क्यों मनाते हैं गोवर्धन पूजा?

भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर सात दिनों तक उठाया और उसकी छाया में गोप और गोपिका खुशी से रहने लगे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर साल गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने के लिए आग्रह किया। तभी से यह पर्व अन्नकूट के रूप में मनाया जाने लगा।