सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण से पूर्व एक निश्चित समयावधि के लिए सूतक लग जाता है। मान्यता अनुसार सूतक के समय पृथ्वी का वातावरण दूषित हो जाता है। जिस कारण इस दौरान किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किए जाते। कई बड़े मंदिरों के कपाट भी सूतक काल के समय बंद कर दिए जाते हैं। चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण लगने से 9 घंटे पहले तो सूर्य ग्रहण का सूतक ग्रहण लगने से 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है। भारत में ग्रहण 21 जून को सुबह 10.17 बजे से लगना है तो इसका सूतक 20 जून की रात 10.17 बजे से ही लग जाएगा।
सूतक काल के समय सावधानियां: सूतक काल लगते ही गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर न निकलने के सुझाव दिये जाते हैं। माना जाता है कि राहु और केतु के दुष्प्रभाव से गर्भ में पल रहे शिशु का शारीरिक रूप अक्षम हो सकता है। साथ ही गर्भवती महिलाओं को ग्रहण काल और सूतक काल में वस्त्र काटने या सिलने, सब्जी काटने और किसी भी तरह की नुकीली वस्तु का प्रयोग करने की मनाही होती है। इसके अलावा सूतक काल लगने से लेकर ग्रहण की समाप्ति तक तेल मालिश करना, जल ग्रहण करना, मल-मूत्र विसर्जन, बालों में कन्घा करना, मञ्जन-दातुन करना तथा यौन गतिविधियों में लिप्त होना प्रतिबन्धित माना जाता है। सूर्य ग्रहण से बारह घण्टे पूर्व से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिये। हालांकि बालकों, रोगियों, गर्भवती महिलाओं तथा वृद्धों के लिये भोजन मात्र एक प्रहर यानी तीन घण्टे के लिये ही वर्जित है।
ग्रहण काल में क्या करें? धार्मिक मान्यताओं अनुसार ग्रहण के बाद पहले से बने हुए भोजन को त्यागकर स्वच्छ एवं ताजा बने हुए भोजन का ही सेवन करना चाहिये। गेहूँ, चावल, अन्य अनाज तथा अचार इत्यादि जिन चीजों को त्यागा नहीं जा सकता, उन खाद्य पदार्थों में कुश घास या तुलसी के पत्ते ग्रहण लगने से पहले डालकर रख देने चाहिए। इससे भोजन सुरक्षित रहता है। ग्रहण समाप्ति के तुरंत बाद स्नान कर लेना चाहिए और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देनी चाहिये। ग्रहणोपरान्त दान करना अत्यन्त शुभ माना जाता है।
ग्रहण के दौरान इन मंत्र का करें जाप:
तमोमय महाभीम सोमसूर्यविमर्दन।
हेमताराप्रदानेन मम शान्तिप्रदो भव॥१॥
श्लोक अर्थ – अन्धकाररूप महाभीम चन्द्र-सूर्य का मर्दन करने वाले राहु! सुवर्णतारा दान से मुझे शान्ति प्रदान करें।
विधुन्तुद नमस्तुभ्यं सिंहिकानन्दनाच्युत।
दानेनानेन नागस्य रक्ष मां वेधजाद्भयात्॥२॥
श्लोक अर्थ – सिंहिकानन्दन (पुत्र), अच्युत! हे विधुन्तुद, नाग के इस दान से ग्रहणजनित भय से मेरी रक्षा करो।