Surya Grahan/Solar Eclipse June 2020 Date and Time: 21 जून को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। भारत के जिन स्‍थानों पर वलयाकार सूर्य ग्रहण दिखाई देगा, उनमें देहरादून, कुरुक्षेत्र, चमोली, जोशीमठ, सिरसा, सूरतगढ़ आदि शामिल हैं। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में आंशिक सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा। ग्रहण की शुरुआत 9 बजकर 16 मिनट के करीब होने लगेगी लेकिन वलयाकार सूर्य ग्रहण 10 बजे के बाद से दिखाई देना शुरू होगा। वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य के पूरे भाग को न ढक कर उसका 98.8% भाग ही ढक पाता है। जानिए क्या है सूर्य ग्रहण और कैसे लगता है ये…

क्यों और कैसे लगता है सूर्य ग्रहण? भौतिक विज्ञान के अनुसार जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चाँद पृथ्वी की। इसी प्रक्रिया के दौरान कभी-कभी चाँद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। यह घटना अमावस्या को ही होती है।

तीन प्रकार के होते हैं सूर्य ग्रहण? चंद्रमा द्वारा सूर्य के बिम्ब के पूरे या कम भाग को ढक पाने के कारण सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं। जिन्हें आंशिक सूर्य ग्रहण, वलयाकार सूर्य ग्रहण और पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण का नजारा धरती पर कम ही देखने को मिलता है।

पूर्ण सूर्य ग्रहण: यह तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। जिससे वह पृथ्वी को अपने छाया क्षेत्र में पूरी तरह से ले लेता है इसके फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश धरती पर नहीं पहुंच पाता और पृथ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार के ग्रहण को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

आंशिक सूर्य ग्रहण: इस ग्रहण के दौरान चंद्रमा धरती से दूर रहते हुए सूर्य व धरती के बीच में इस प्रकार से आ जाता है जिससे सूर्य का कुछ भाग धरती से दिखाई नहीं देता। यानी चंद्रमा सूर्य के कुछ ही भाग को ढक पाता है। इसे ही आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण: जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आकर सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित दिखाई देता है और बीच का भाग पूरी तरह से ढका हुआ। इस स्थिति में सूर्य कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

सूर्य ग्रहण लगने के धार्मिक कारण: पौराणिक मान्यता के अनुसार जब समुद्र मंथन चल रहा था तब उस दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद पैदा शुरू होने लगा, तो इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी के रूप से सभी देवता और दानव उन पर मोहित हो उठे तब भगवान विष्णु ने देवताओं और दानवों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन तभी एक असुर को भगवान विष्णु की इस चाल पर शक पैदा हुआ। वह असुर छल से देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान करने लगा।

लेकिन देवताओं की पंक्ति में बैठे चंद्रमा और सूर्य ने इस दानव को ऐसा करते हुए देख लिया जिस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन अमृत का पान कर लेने के कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहू और धड़ वाला भाग केतू के नाम से जाना गया। क्योंकि सूर्य और चंद्रमा के कारण उस दानव की ये दशा हुई थी इसलिए तभी से राहू और केतू इन्हें अपना दुश्मन मानने लगे। जो पूर्णिमा के दिन चंद्रमा और अमावस्या के दिन सूर्य का ग्रास करने की कोशिश करते हैं और जब वह ऐसा कर पाने में सफल हो जाते हैं तब इस घटना को ग्रहण कहा जाता है।