सनातन धर्म में पंचांग के अनुसार श्रावण का पवित्र मास पांचवा होता है जो भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है भगवान शिव श्रावण मास में अपने ससुराल कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में व्यतीत करते हैं और जो श्रद्धालु उनके ससुराल कनखल में आकर दक्षेश्वर महादेव का जलाभिषेक करते हैं पूजा अर्चना करते हैं, भगवान भोलेनाथ उसका कल्याण करते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और शिवलोक में उन्हें वास मिलता है। शिव की उपासना के लिए श्रावण का महीना सर्वोत्तम माना गया है। भगवान शिव दक्षेश्वर महादेव के रूप में सावन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा 14 जुलाई को अपने ससुराल कनखल में आ गए हैं और वे 12 अगस्त रक्षाबंधन तक रहेंगे। उसके बाद कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करेंगे।
इस साल श्रावण का पवित्र महीना ज्योतिषियों के अनुसार 14 जुलाई से शुरू हो गया है जो 12 अगस्त रक्षाबंधन को श्रावण पूर्णिमा के दिन समाप्त होगा। ब्राह्मण लोग श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रावणी पर्व मनाते हैं और यज्ञोपवित की प्रतिष्ठा करके 10 विधि स्रान गंगा या अन्य नदियों में करते हैं और नई जनेऊ धारण करते हैं। श्रावणी पूर्णिमा को उत्सर्जन, उपाकर्म, सभा द्वीप, रक्षाबंधन, श्रावणी कर्म, सर्प बलि तथा हयग्रीव नामक ये सात व्रत श्रावणी पूर्णिमा को होते हैं।श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को भाई-बहन का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है। बहनें भाई के दीर्घायु, स्वस्थ और वैभवशाली जीवन के लिए भाई के हाथों में राखी बांधती हैं और भाई उन्हें सौभाग्यवती और आयुष्मान होने का वरदान देते हैं।
श्रावण मास का पहला सोमवार 18 जुलाई को है श्रावण मास के सोमवार को सोम या चंद्रवार भी कहते हैं। सोमवार और प्रदोष का दिन भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है। श्रावण मास में मंगलवार को मंगलागौरी व्रत, बुधवार को बुध गणपति व्रत, बृहस्पतिवार को बृहस्पति देव व्रत, शुक्रवार को जीवंतिका व्रत, शनिवार को बजरंग बली व नृसिंह व्रत और रविवार को सूर्य व्रत होता है।
श्रावण माह में श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव का गहरा संबंध है। भगवान शिव ने स्वयं सनत्कुमार से कहा है मुझे बारह महीनों में श्रावण मास अत्यंत प्रिय है। श्रावण माह में ही भगवान शिव भगवान विष्णु यानी श्रीहरि के साथ मिलकर लीला करते हैं और श्रावण मास में भगवान शिव पृथ्वी में वास करते हैं। इस मास की विशेषता है कि इसका कोई दिन व्रत शून्य नहीं माना जाता है।
श्रावण मास में सोमवार और प्रदोष का व्रत रखने का विशेष महत्व है। हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाता है हरियाली तीज की इस साल 31 जुलाई को मनाई जाएगी श्रावण मास में झूला झूलने का विशेष महत्व माना गया है। श्रावण मास के हरियाली तीज में वृंदावन में बांके बिहारी के मंदिर में राधा और कृष्ण और गोपियों का विग्रह श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ मंदिर के गर्भ गृह से बाहर निकाल कर खुले मंच पर रखा जाता है, जहां श्रद्धालु बांके बिहारी का राधा और गोपियों के साथ अत्यंत दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं और पुण्य प्राप्त करते हैं।
श्रावण माह में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शतरूद्र का पाठ और पुरुष सूक्त का पाठ एवं पंचाक्षर, षडाक्षर आदि शिव मंत्रों व नामों का जप अत्यधिक फल देने वाला होता है। श्रावण मास में प्रतिपदा तिथि के देवता अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया के गौरी, चतुर्थी के गणनायक, पंचमी के नाग, षष्ठी के नाग, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नवमी के दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के स्वामी विश्वदेव, द्वादशी के भगवान श्रीहरि, त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के भगवान शिव, अमावास्या के पितर और पूर्णिमा के स्वामी चंद्रमा हैं।
श्रावण मास के कृष्ण पक की प्रतिपदा से कांवड़ मेला शुरू होता है और जो चतुर्दशी मासिक शिवरात्रि के दिन समाप्त होता है। इस बार 15 दिन तक चलने वाला कावड़ मेला 14 जुलाई से 26 जुलाई तक चलेगा और शिवभक्त कावड़िए हरिद्वार और गंगोत्री से गंगाजल अपनी का मन में भरकर मीलों लंबी पैदल यात्रा करके अपने अपने गांव शहर और कस्बों में स्थित शिवालयों में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करेंगे।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन शीतला माता की पूजा का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार मरकंडू ऋ षि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण माह में ही घोर तप कर शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया था और दीर्घायु जीवन व्यतीत करने का उन्हें आशीर्वाद मिला।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में ही सुर और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया गया था।
समुद्र मंथन से जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने श्रावण मास में अपने कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा की और भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा और उत्तराखंड के मणिकूट पर्वत माला में भगवान शिव ने बहने वाले झरने के नीचे बैठकर विष को शांत करने के लिए समाधि ली थी। यह स्थान आज उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के यम्केश्वर विकासखंड में नीलकंठ महादेव के नाम से विख्यात है, जहां भगवान शिव का विशाल मंदिर है इस मंदिर में श्रावण मास में 1 महीने का विशाल मेला लगता है और इस सिद्ध पीठ नीलकंठ महादेव का जलाभिषेक करने से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित खिमेश चंद्र जोशी बताते हैं कि शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनका अभिषेक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए साधना की दृष्टि से अत्यंत महत्व वाला होता है और श्रावण मास से चार महीनों तक चातुर्मास होता है जिसमें साधु संत भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा करते हैं और साधु संत एक स्थान पर ही रहकर चातुर्मास का व्रत पूर्ण करते हैं।
चातुर्मास में साधु सतों के लिए नदी को पार करना निषेध माना गया है श्रावण मास में बेल पत्री भगवान शिव को चढ़ाने का विशेष महत्व है जिससे मनुष्य रोगों से मुक्त रहता है। श्रावण मास में भगवान शिव संसार का संचालन करते हैं और संसार के कर्ताधर्ता होते हैं। भगवान विष्णु चातुर्मास में क्षीर सागर में योग निद्रा को चले जाते हैं और सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं और देवशयनी एकादशी से लेकर देव उठानी एकादशी यानी चार महीने तक सृष्टि का संचालन भगवान शिव ही करते हैं। देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पड़ती है। इस साल 10 जुलाई के दिन पड़ी थी और देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं जो तिथि इस साल चार नवंबर को मनाई जाएगी जिसे हरिबोधनी एकादशी भी कहते हैं।