Sheetala Ashtami (Sheetla Mata) Katha, Puja Vidhi, Muhurat And Aarti: शीतला अष्टमी के व्रत की अनेक कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक बार एक बुढ़िया और उसकी दोनों बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। शीतला अष्टमी के दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था। इसलिये एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख लिया गया था। लेकिन दोनों बहुओं ने बासी भोजन ग्रहण नहीं किया क्योंकि दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान हुई थी और उन्हें डर था कि कहीं बासी भोजन खाने से उनकी संतान और वे खुद बीमार न हो जायें।
दोनों बहुओं ने बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा की और इसके पश्चात पशुओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ ही अपने लिये भी ताजा भोजन बनाकर ग्रहण किया। जब सास ने बासी भोजन करने की कही तो उन्होंने काम का बहाना बनाकर उसे टाल दिया। उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गई और उनके नवजात शिशुओं की अचानक मृत्यु हो गई। सास को जब पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों बहुओं को घर से निकाल दिया।
दोनों अपने बच्चों के शवों को लिये जा रही थी रास्ते में वे बरगद के पेड़ के नीचे विश्राम के लिये ठहर गई। वहीं ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थी जो सिर में पड़ी जुओं से बहुत परेशान थी। बहुओं को उनकी स्थिति देख उन पर दया आ गयी और उनकी मदद कर उन्होंने उन बहनों के सिर से जुएं निकालीं जिससे उन्हें कुछ देर में चैन मिल गया। उन बहनों ने बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये।
तब बहुओं ने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई तो इस पर उनमें से एक बहन शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ता है। बहुओं ने माता शीतला को पहचान लिया और उनके चरणों में पड़ गई और क्षमा याचना करने लगीं। माता को उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उन्होंने उनके मृत बालकों को जीवित कर दिया। तब दोनों बहुएं खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गये और इसके बाद से पूरा गांव माता शीतला को मानने लगा।
शीतला माता की पूजा विधि और मुहूर्त: शीतला अष्टमी की पूजा 4 अप्रैल को सुबह 06:08 AM से शाम 06:41 PM तक की जाएगी। इस दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करें। संभव हो तो नारंगी रंग के वस्त्र पहनें। पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, नमक पारे, मठरी और सप्तमी को बने मीठे चावल रखें। दूसरी थाली में आटे का दीपक, रोली, होली वाली बड़कुले की माला, वस्त्र, अक्षत, मोली, सिक्के और मेहंदी रखें। इसी के साथ में ठंडे पानी का लोटा भी रखें। घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करें। फिर सभी चीजों का भोग लगाएं।
घर में पूजा करने के बाद शीतला माता के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करें। माता को बासी खाने का भोग लगाएं और कपूर जलाकर उनकी आरती उतारें और ऊं शीतला मात्रै नम: मंत्र का जाप करें। इस दिन नीम के पेड़ में जल चढ़ाने की भी परंपरा है। अंत में होलिका दहन जहां हुआ था वहां पूजा करें।
शीतला माता की आरती:
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता…
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता…
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता…
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता…
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता…
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता…
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता…
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता…
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता…
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता…
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।
जय शीतला माता…।