Sawan 2021 Start And End Date: देवों के देव महादेव की पूजा का विशेष महीना सावन 25 जुलाई दिन रविवार से शुरू होने जा रहा है और इसकी समाप्ति 22 अगस्त को होगी। कहते हैं कि इस महीने जो भक्त इनकी सच्चे दिल से अराधना करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शिव अनादि हैं यानी ना तो उनका कोई आरंभ है ना कोई अंत। ये देव, दानव, मनुष्य हर किसी के पूजनीय हैं। कहते हैं कि इनके भक्तों को शनि देव तक परेशान नहीं करते। यहां आप जानेंगे शिव की भक्ति से जुड़ी एक लोकप्रिय कथा जिसमें बताया गया है कि कैसे शिव ने अपने भक्त के प्राणों की रक्षा के लिए काल का भी अंत कर दिया था।
भगवान शिव से जुड़ी जिस कहानी का हम जिक्र कर रहे हैं कहते हैं कि भगवान कार्तिकेय ने संतों को खुद ये कथा सुनाई थी। इसके अनुसार श्वेतकेतु नाम का एक राजा था जो भोलेनाथ का परम भक्त था। राजा श्वेतकेतु बेहद ही सदाचारी, सत्यवादी, धर्म के मार्ग पर चलने वाले शूरवीर और प्रजा पालक थे। वह पूरी निष्ठा से अपनी प्रजा का पालन करने के साथ पूरी श्रद्धा भाव से शिव भक्ति भी करते थे। उनकी भक्ति से शिव भी अत्यंत प्रसन्न थे।
एक दिन जब राजा श्वेतकेतु का जीवनकाल समाप्त होने को था उस समय वह भोलेनाथ की आराधना में लीन हो गए थे। श्वेतकेतु की मृत्यु की घड़ी समीप आ गई थी तब यमराज ने अपने दूतों को आज्ञा दी कि जाकर श्वेतकेतु के प्राण हर लाएं। यमदूत जैसे ही राजा श्वेतकेतु के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वह शिव मंदिर में थे। दूत बाहर ही खड़े हो गए। श्वेतुकेतु इस दौरान बहुत ही गहरे ध्यान में थे। बहुत समय व्यतीत हो गया, न श्वेतकेतु का ध्यान टूटा न ही यह दूत हिले। जब यमदूत अपना काम करके वापस नहीं पहुंचे तो यमराज ने अपना कालदंड संभाला और खुद ही चल पड़े। (यह भी पढ़ें- इस राशि वालों के लिए शनि ढैय्या रहेगी लाभकारी, योग कारक की भूमिका निभाएंगे शनिदेव)
जब यमराज श्वेतकेतु के प्राण हरने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वह तो महादेव की साधना में लीन है। ऐसे में इसके प्राण कैसे लिए जाएं? उन्होंने सोचा कि यह तो पूरी तरह से शिव भक्ति में डूबा है और इस स्थिति में शिव पूजा का का उल्लंघन करना सही नहीं है। ऐसा सोचते हुए यमराज भी बाहर ही खड़े हो गए। लेकिन जैसे ही काल को इसकी सूचना मिली तो वे तलवार निकालकर सीधे शिव मंदिर में जा घुसे। काल ने देखा कि राजा श्वेतुकेतु शिव के लिंग स्वरूप के सामने बैठे ध्यान मग्न हैं। वह आगे बढ़ा और जैसे ही उसने राजा श्वेतकेतु को मारने के लिए तलवार उठाई वैसे ही शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर काल की तरफ देखा जिससे काल तुरंत भस्म कर दिया।
इस घटना के बाद जब राजा श्वेतकेतु का ध्यान टूटा तो उन्होंने राख में बदल चुके काल को देखा। उन्हें चिंता हुई कि यह भला कौन है और क्या है? फिर उन्होंने भगवान शिव से इसके बारे में पूछा, तब भोलेनाथ ने बताया कि यह काल था जो तुम्हारे प्राण लेने आया था। यह सुनकर राजा श्वेतकेतु ने कहा कि हे महाकाल यह तो आपकी ही आज्ञा से तीनों लोक में विचरता है और लोक को नियंत्रण में रखता है। इसके डर से ही लोग पुण्य कर्म करते हैं। इसलिए आप इसे जीवनदान दे दें। राजा श्वेतकेतु के आग्रह पर शिवजी ने काल को जीवनदान दे दिया और काल ने उठते ही श्वेतकेतु को अपने गले से लगाकर बोला राजा तुम जैसा तीनों लोकों में कोई नहीं है।
जीवनदान पाकर काल और यमराज ने कहा कि ऐसे व्यक्ति जो शिवजी के परम भक्त हैं। जिनकी सिर पर जटा और गले में रुद्राक्ष रहता है। जो विभूति का त्रिपुंड ललाट पर लगाते हैं और पंचाक्षर मंत्र का जप करते हैं ऐसे लोगों को कभी भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ेगा।