श्राद्ध 5 सितंबर से शुरू होने वाले हैं। श्राद्ध में अपने पितरों को तर्पण दिया जाता है। बताया जाता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध करके चुकाए जाते हैं। श्राद्ध आश्विन माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 का होता है। इसके अलावा इसमें पूर्णिमा के श्राद्ध के लिए भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को भी शामिल किया जाता है। इस तरह कुल 16 श्राद्ध होते हैं। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं तर्पण की आसान विधि बता रहे हैं।
आठ से 11 के बीच में।
श्राद्ध के दिन जल में काले तिल डालें, सफेद तिल का इस्तेमाल बिल्कुल भी ना करें। श्राद्ध वाले दिन सुबह स्नान करने के बाद जल में तिल के अलावा जौ, कुशा, अक्षत व श्वेत पुष्प, चंदन, कच्चा दूध डाले लें। इसके बाद पूजा स्थान पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाएं। दो कुषा की पवित्री दाहिने हाथ की अनामिका में और तीन कुषा की पवित्री बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में धारण करके पितृ तर्पण का संकल्प करें। देव ऋषि और अपने पितरों का आवाहन करें, उंगलियों के अग्र भाग से 29 बार देव तर्पण या देवताओं को जल दें। इसके लिए 29 अलग-अलग मंत्र हैं, अगर आपको याद नहीं है तो नहीं तो ‘ऊँ ब्रह्मा तृप्यताम्’ मंत्र का उच्चारण करके तर्पण करें। देव तर्पण के बाद नौ बार ऋषियों को जल दें, इसमें भी सबके नाम नहीं ले सकें तो ‘ऊँ नारदस्तृप्यताम्’ का उच्चारण करें।
इसके बाद उत्तराभिमुख होकर बैठ जाएं और दिव्य मनुष्यों का तर्पण करें, इसमें सात दिव्य मनुष्य हैं, प्रत्येक को दोनों हाथ की हथेलियों से जल दें। एक दिव्य पुरुष के लिए दो बार, इस प्रकार 14 बार तर्पण करें, सबके नाम नहीं ले सकें तो ‘ऊँ सनकस्तप्यताम’ का उच्चारण करें। दिव्य मनुष्य को जल देने के बाद दक्षिणाभिमुख होकर दिव्य पितृ तर्पण करें, इसमें सात नाम आते हैं, प्रत्येक तो तीन-तीन बार जल देने का विधान है। तर्जनी मूल से इक्कीस बार जल दें, इसमें 21 बार ‘ऊँ तस्मै स्वधा’ का उच्चारण करना होता है। दिव्य पितृ तर्पण के मुताबिक ही यम तर्पण करें। इसमें चौदह यम हैं, प्रत्येक यम के लिए 3-3 अंजुली जल दें। इस प्रकार 42 बार जल दें, इसमें 14 नाम लें तो ‘ऊँ यमाय नम:’ भी कह सकते हैं।
इसके बाद अपने पितरों के नाम से पितृ तर्पण करें, इसमें सबसे पहले आप अपने गौत्र का उच्चारण करें। अपने पूर्वजों के नाम का ध्यान करके ‘तस्यै स्वधा’ बोलकर एक-एक नाम से तीन-तीन बार जल पिता, दादा, परदादा को दें। माता, दादी, परदादी को जल देते समय ‘तस्यै स्वधा’ बोलें, फिर नाना, परनाना, नानी, परनानी को जल दें। इसके अलावा अन्य संबंधियों के नाम, गौत्र का उच्चारण करके जल दें। इसके बाद सूर्य को पुष्प, चंदन मिला जल से अर्घ्य देकर जल नेत्रों से लगाएं, अंत में ‘ऊँ विष्णवे नम:’ का 3 बार उच्चारण करके क्षमा-प्रार्थना करें। तर्पण में दिया गया जल किसी पवित्र पेड़ की जड़ों में डाल दें।
(यह विधि फर्स्ट इंडिया न्यूज चैनल के लिए पं. मुकेश शास्त्री ने बताई है।)