Ram Navami 2020 (ram Navami) Puja Vidhi, Vrat Vidhi, Muhurat, Timings, Mantra: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने धरती पर राम के रूप में जन्म लिया। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को हर साल भगवान राम के जन्म के दिन को बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है। खासतौर से राम जन्मभूमि अयोध्या में इस पर्व की खास रौनक देखने को मिलती है। इस दिन लोग व्रत रख भगवान राम की विधिवत पूजा उपासना करते हैं। जानिए इस व्रत की पूजा विधि और व्रत कथा…
Ram Navami 2020 Puja Vidhi, Muhurat, Mantra, Aarti: लॉक डाउन के बीच कैसे मनाएं राम नवमी का पर्व, जानिए पूजा विधि, मंत्र, कथा और संबंधित सभी जानकारी
रामनवमी का मुहूर्त (Ram Navami Muhurat):
रामनवमी मुहूर्त :11:09:46 से 13:39:50 तक
अवधि :2 घंटे 30 मिनट
रामनवमी मध्याह्न समय :12:24:48
रामनवमी व्रत की कथा (Ram Navami Vrat Katha):
एक बार की बात है जब राम, सीता और लक्ष्मण वनवास पर थे। वन में चलते-चलते भगवान राम ने थोड़ा विश्राम करने का विचार किया। वहीं पास में एक बुढिया रहती थी, भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता बुढ़िया के पास पंहुच गये। बुढ़िया उस समय सूत कात रही थी, बुढिया ने उनकी आवभगत की और उन्हें स्नान ध्यान करवा भोजन करने का आग्रह किया इस पर भगवान राम ने कहा माई मेरा हंस भी भूखा है पहले इसके लिये मोती ला दो ताकि फिर मैं भी भोजन कर सकूं। बुढ़िया मुश्किल में पड़ गई लेकिन घर आये मेहमानों का निरादर भी नहीं कर सकती थी। वह दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और उनसे उधार में मोती देने की कही राजा को मालूम था कि बुढिया की हैसियत नहीं है लौटाने की लेकिन फिर भी उसने तरस खाकर बुढिया को मोती दे दिया। अब बुढ़िया ने वो मोती हंस को खिला दिया जिसके बाद भगवान श्री राम ने भी भोजन किया। जाते जाते भगवान राम बुढिया के आंगन में मोतियों का एक पेड़ लगा गये। कुछ समय बाद पेड़ बड़ा हुआ मोती लगने लगे बुढ़िया को इसकी सुध नहीं थी। जो भी मोती गिरते पड़ोसी उठाकर ले जाते। एक दिन बुढिया पेड़ के नीचे बैठी सूत कात रही थी की पेड़ से मोती गिरने लगे बुढ़िया उन्हें समेटकर राजा के पास ले गई। राजा हैरान कि बुढ़िया के पास इतने मोती कहां से आये बुढ़िया ने बता दिया की उसके आंगन में पेड़ है अब राजा ने वह पेड़ ही अपने आंगन में मंगवा लिया लेकिन भगवान की माया अब पेड़ पर कांटे उगने लगे एक दिन एक कांटा रानी के पैर में चुभा तो पीड़ी व पेड़ दोनों राजा से सहन न हो सके उसने तुरंत पेड़ को बुढ़िया के आंगन में ही लगवा दिया और पेड़ पर प्रभु की लीला से फिर से मोती लगने लगे जिन्हें बुढ़िया प्रभु के प्रसाद रुप में बांटने लगी।