Ram Navami 2020 Date, Puja Vidhi, Timings: चैत्र माह के नौवें दिन राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन का हिंदू धर्म के लोगों के लिए विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। रामनवमी के दिन मां दुर्गा और श्री राम और मां सीता का पूजन किया जाता है। इस दिन देवी मां के 9वें स्वरूप सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है।
क्यों मनाई जाती है राम नवमी: इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इसी के साथ नवरात्रि पर्व का भी ये आखिरी दिन होता है। पौराणिक कथाओं अनुसार भगवान श्रीराम ने धर्म युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की पूजा की थी। इसके बाद श्रीराम ने रावण का वध किया था। ये भी कहा जाता है कि राम नवमी के दिन गी गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस का लिखना शुरू किया था। इस दिन कई लोग श्री राम को याद करते हुए व्रत रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि व्रत रखने और विधिवत पूजा हवन करने से उपासकों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
राम नवमी 2020 मुहूर्त:
2 अप्रैल
राम नवमी पूजा मुहूर्त – 11:10 से 13:38
नवमी तिथि आरंभ – 03:39 (2 अप्रैल 2020)
नवमी तिथि समाप्त – 02:42 (3 अप्रैल 2020)
रामनवमी का इतिहास: अयोध्या के महाराजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की योजना बनाई। यज्ञ प्रारंभ के समय उन्होंने अपनी चतुरंगिनी सेना के साथ श्यामकर्ण नामक घोड़ा छोड़ दिया। अब उनका यज्ञ प्रारंभ हुआ। उनके यज्ञ में सभी ऋषि-मुनि, तपस्वी, विद्वान, राजा-महाराजा, मित्र और उनके गुरु वशिष्ठ जी भी शामिल हुए। सभी लोगों की उपस्थिति में यज्ञ प्रारंभ हो गया।
मंत्रोच्चार से चारों दिशाएं गूंज उठीं और यज्ञ की आहुति से महकने लगीं। यज्ञ के लिए विशेष खीर बनाया गया। यज्ञ के समापन के समय महाराज दशरथ ने अपने सभी अतिथियों, ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों आदि को दान देकर सकुशल विदा किया। यज्ञ के समापन के बाद दशरथ जी ने यज्ञ के समय बने खीर को अपनी तीनों रानियों को प्रसाद सवरूप खिलाया। उसके प्रभाव से उनकी तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने एक शिशु को जन्म दिया। वह शिशु बेहद आकर्षक, तेजस्वी और नील वर्ण वाला था। वह और कोई नहीं, साक्षात् श्रीहरि विष्णु के स्वरुप राम थे। इसके पश्चात रानी कैकेयी ने एक और रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया। चार पुत्रों को पाकर महाराज दशरथ अत्यंम प्रसन्न हुए, पूरे राज्य में उत्सव मनाया गया। प्रजा, दरबारियों, मंत्रियों आदि को उपहार दिए गए। ऋषि-मुनियों, ब्राह्मणों आदि को दान दक्षिणा दिया गया।
कुछ समय पश्चात उन चारों शिशुओं का नामकरण संस्कार किया गया। महर्षि वशिष्ठ ने दशरथ जी के बड़े पुत्र का नाम राम, दूसरे का भरत, तीसरे का लक्ष्मण और सबसे छोटे पुत्र का नाम शत्रुघ्न रखा। चारों बालकों की किलकारियों से पूरा महल गूंज उठता था। महाराज दशरथ अपनी तीनों रानियों के साथ अपने बालकों पर पूरा स्नेह लुटाते थे। पूरी अयोध्या में आनंद से सराबोर थी। समय के साथ जब चारों भाई बड़े हुए तो उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई।
गुरु विश्वामित्र ने ही भगवान राम को धनुर्विद्या और शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया। वहीं, ऋषि वशिष्ठ ने श्रीराम को राज-पाट और वेदों की शिक्षा दी। उन्होंने ही श्रीराम का राज्याभिषेक कराया था।
राम नवमी की व्रत विधि:
रामनवमी के दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
अब पूजा स्थल पर पूजन सामग्री एकत्रित कर लें।
पूजा में तुलसी पत्ता और कमल का फूल जरूर होना चाहिए।
उसके बाद श्रीराम नवमी की षोडशोपचार पूजा करें।
खीर और फल-मूल को प्रसाद के रूप में तैयार करें।
पूजा के बाद घर की सबसे छोटी महिला सभी लोगों के माथे पर तिलक लगाएं।
राम नवमी के दिन विधिवत हवन भी किया जाता है।
नवरात्रि का ये आखिरी दिन होता है इसलिए कई लोग इस दिन कन्याओं को भोजन भी कराते हैं।