Raksha Bandhan (Rakhi) 2021 Date and Time, Puja Vidhi: रक्षाबंधन का पर्व हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। कई पुरातन धर्म ग्रंथों में इस पर्व का उल्लेख मिलता है। श्रावणी पूर्णिमा के दिन कलाई पर रक्षासूत्र बांधने की परंपरा वैदिक काल से ही चली आ रही है। प्राचीन काल में पुरोहित राजा और समाज के वरिष्ठजनों को इस दिन रक्षा सूत्र बांधा करते थे। कई जगह इस बात का भी जिक्र मिलता है शिष्य इस दिन अपने गुरुओं को रक्षासूत्र बांधते थे। लेकिन कब ये भाई-बहनों का त्योहार बन गया जानिए इन रौचक कथाओं से।

राखी ऐसे बना भाई-बहन का त्योहार: पौराणिक कथा अनुसार भगवान विष्णु के भक्त राजा बलि बहुत बड़े दानी थे। उन्होंने एक बार यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार में पहुंचे और राजा बलि से दान में तीन पग भूमि मांग ली। राजा बलि ने उनकी मांग की पूर्ति करनी चाहिए। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। यह देखकर राजा बलि समझ गए कि ये भगवान हैं जो उनकी परीक्षा ले रहे हैं। अब तीसरे पग के लिए राजा बलि के पास कुछ नहीं बचा था तो उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब मेरे पास कुछ नहीं बचा है तो है प्रभु मेरी विनती है कि आप मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान विष्णु ने अपने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़ वे पाताल चले गए।

भगवान विष्णु के बैकुंठ से चले जाने को लेकर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। भगवान विष्णु को वापस पाने की इच्छा से देवी लक्ष्मी ने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंच गईं। इसके बाद उन्होंने राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं तब देवी लक्ष्मी ने अपने वास्तविक रूप में आकर कहा कि आपके पास साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। बलि ने रक्षासूत्र का धर्म निभाया और भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को सौंप दिया। कहते हैं इसी दिन से राखी भाई बहन का त्योहार बन गया और रक्षाबंधन का मंत्र भी इसी से बना।

महाभारत में भी है जिक्र: एक कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण ने राजा शिशुपाल का वध किया था, तब उनकी उंगली से खून बहने लगा था। कृष्ण जी के हाथ से खून बहता देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर उनकी उंगली में बांध दिया। कहा जाता है कि यहीं से भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन मान लिया था। भगवान कृष्ण ने भी अपनी बहन की रक्षा के वादे को निभाते हुए चीर हरण के दौरान द्रौपदी की रक्षा की थी।