सदगुरुश्री स्वामी आनन्द जी
23 सितम्बर की अल सुबह 8 बजकर 23 मिनट पर राहु मिथुन से वृष राशि में और केतु धनु से वृश्चिक में पदार्पण करने वाले हैं। 23 सितम्बर के राहु-केतु के गोचर के समय शनि अपनी ही राशि मकर में जहां सशक्त नज़र आ रहे हैं, वहीं मंगल भी अपनी ही राशि मेष में कठोरता से जम कर बैठे हैं। शुक्र कर्क में, सूर्य कन्या में, बुध तुला में और गुरु अपनी राशि धनु में झण्डा गाड़े हुए हैं। ग्रहयोगों के मद्देनज़र यदि भारत के संदर्भ में बात करें तो अर्थव्यवस्था का संकट गहराएगा। शेयर बाज़ार अचानक गोता खाएगा।
राष्ट्र के किसी प्रमुख व्यक्ति के स्वास्थ्य और जीवन पर तनाव, देश की पेशानी पर चिन्ता की खुरदुरी लकीरें उकेरेगा। इसके साथ ही कई अन्य बड़े लोगों से जुड़ी परेशान करने वाली खबर आएगी। कई बड़े अग्निकांड हो सकते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के संकेत मिल रहे हैं। कई इमारतें ताश के पत्तों की तरह भरभरा जाएगी। सिनेमा का पर्दा अठारह महीनों तक बेपरदा रहेगा। विज्ञान और शोध के क्षेत्रों से अच्छी खबर आएगी।
अशुभ रहा है ये खगोलीय संयोग:
तारीख़ गवाह है कि जब-जब यह गोचर घटित हुआ है, कुछ अनिष्ट हुआ है। अब से लगभग साढ़े अठारह साल पहले जब गुजरात में दंगा हुआ था, तब राहु वृष और केतु वृश्चिक में ही था। एक से 8 जून 1984 में जब अमृतसर में ऑपरेशन ब्लू हुआ था, तब राहु वृष में और केतु वृश्चिक में ही भ्रमणशील थे। 31 अक्टूबर 1984 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या हुई और उसके बाद के दंगों के समय भी राहु-केतु इन्ही राशियों में चलायमान थे।
अप्रैल 1965 में जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था, तब भी राहु वृष में और केतु वृश्चिक में ही थे। 11 जनवरी 1966 को जब लालबहादुर शास्त्री की विचित्र परिस्थितियों में मृत्यु हुई थी, तब भी राहु-केतु की यही स्थिति थी। उसके पहले जब भारत आज़ाद हुआ और विभाजन के दरम्यान 5 से 10 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी, तब भी राहु वृष में और केतु वृश्चिक में ही भ्रमणशील थे। ये श्रृंखला बहुत लम्बी है। पर केवल राहु केतु की स्थिति ही पर्याप्त नही है। सनद रहे कि अन्य प्रमुख ग्रहों की स्थितियों को देखना अनिवार्य है।