पितृ पक्ष 2019 की शुरुआत 14 सितंबर से हो गई है और 28 सितंबर को श्राद्ध करने का आखिरी दिन होगा। इसके बाद नवरात्रि का पर्व (Navratri 2019) आरंभ हो जायेगा। पितृ पक्ष में तिथि अनुसार पितरों का तर्पण किया जाता है। यानी कि जिस तिथि में जिस पूर्वज का स्वर्गवास हुआ हो उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है जिनकी परलोक जाने की तिथि याद न हो, उन सबका श्राद्ध अमावस्या या कुछ विशेष तिथियों में किया जा सकता है, जो इस प्रकार है…
आश्विन कृष्ण पंचमी- अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है तो ऐसे व्यक्ति का श्राद्ध पितृ पक्ष की पंचमी तिथि पर करना चाहिए। जो 19 सितंबर को पड़ रही है।
आश्विन कृष्ण नवमी- इस तिथि पर उस महिला का श्राद्ध किया जाता है जिसकी मृत्यु उसके पति से पहले हुई हो यानी कि पति के जीवित रहते जिस स्त्री की मृत्यु हो जाती है, उसका श्राद्ध नवमी तिथि पर करना चाहिए। इस तिथि पर परिवार की सभी मृत महिलाओं के लिए श्राद्ध करने का विधान है। ये तिथि इस बार 23 सितंबर को पड़ रही है।
आश्विन कृष्ण एकादशी- पितृ पक्ष की एकादशी तिथि पर उन लोगों के लिए श्राद्ध करना चाहिए, जो संन्यासी हो गए थे। इस बार ये तिथि 24 सितंबर को पड़ रही है।
आश्विन कृष्ण त्रयोदशी- इस तिथि में मृत बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। इस बार ये तिथि 26 सितंबर को पड़ रही है।
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी- इस तिथि में जिनकी मृत्यु किसी शस्त्र से हुई हो, या फिर आत्म हत्या की हो या दुर्घटना में हुई हो यानी जिन लोगों की अकाल मृत्यु होती है, उनका श्राद्ध पितृ पक्ष की चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए। ये तिथि 27 सितंबर को है।
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सर्वपितृमोक्ष अमावस्या- ये पितृ पक्ष की आखिरी तिथि होती है। यदि पूरे पितृ पक्ष में किसी का श्राद्ध करना भूल गए हैं या मृत व्यक्ति की तिथि मालूम नहीं है तो इस तिथि पर उनके लिए श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध की अंतिम तिथि 28 सितंबर को पड़ रही है।
श्राद्ध विधि- वैसे तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना सबसे उत्तम माना गया है। लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध कर्म करवाना हो उस दिन व्रत रखना चाहिए। स्नान कर शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बना लें। इस दिन खीर आदि कई पकवानों से ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिये। याद रखें कि श्राद्ध पूजा दोपहर के समय आरंभ करनी चाहिये। श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को श्राद्ध वाले दिन न्योता देकर बुलाएं। ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, काले कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिये और इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का ध्यान करना चाहिये और उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिये। इसके बाद तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई व बनाए गए पकवानों से ब्राह्मण देवता को भोजन करवाना चाहिये। भोजन के पश्चात उन्हें दान दक्षिणा भी दें। माना जाता है कि इस विधि से श्राद्ध पूजा करने से जातक को पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है।