Navratri 2021 Ashtami Kanya Pujan Shubh Muhurat And Vidhi: इस बार आठ दिन की ही नवरात्रि हैं। जिस कारण कई लोगों को ये कंफ्यूजन है कि अष्टमी 13 अक्टूबर को है या फिर 14 को है? ये दोनों ही तिथियां इसलिए खास है क्योंकि कोई अष्टमी के दिन कन्या पूजन करके नवरात्रि व्रत का पारण करता है तो कोई नवमी के दिन। बता दें पंचांग अनुसार इस बार आठवां नवरात्र 13 अक्टूबर को है और नौंवा नवरात्र 14 को। जबकि विजयादशमी यानी दशहरा (Dussehra 2021) 15 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यहां आप जानेंगे नवरात्रि अष्टमी की पूजा विधि, मंत्र, कथा, आरती और कन्या पूजन के बारे में।
नवरात्रि अष्टमी तिथि का महत्व: नवरात्रि अष्टमी को महाअष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां अंबे के महागौरी स्वरूप की पूजा होती है। इस दिन कई लोग अपने घरों में हवन करते हैं। कहते हैं माता के इस स्वरूप की पूजा से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन कई जगह शस्त्र पूजन भी किया जाता है। महाष्टमी के दिन मां दुर्गा का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। कई लोग इस तिथि को कुमारी पूजा भी करते हैं।
नवरात्रि के आठवें दिन ऐसे करें मां महागौरी की अराधना: अष्टमी को महागौरी देवी को नारियल का भोग जरूर लगाएं। संभव हो तो इस दिन गुलाबी रंग के वस्त्र पहनकर मां की पूजा करें। ज्योतिष अनुसार मां महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। ऐसे में इनकी पूजा से राहु ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। कहते हैं नवरात्रि के आठवें दिन यदि सुहागिन महिलाएं माता को चुनरी अर्पित करती हैं तो उनके सुहाग की उम्र लंबी बनी रहती है। इसके पूजन से अटके हुए काम बनने लगते हैं।
मां महागौरी के मंत्र:
-ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
-प्रार्थना मंत्र
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
-स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
कन्या पूजन अष्टमी 2021 मुहूर्त (Kanya Puja 2021 shubh Muhurat):
नवरात्रि अष्टमी शुभ मुहूर्त: अमृत काल- 03:23 AM से 04:56 AM तक और ब्रह्म मुहूर्त– 04:41 AM से 05:31 AM तक है।
दिन का चौघड़िया मुहूर्त :
लाभ – 06:26 AM से 07:53 PM
अमृत – 07:53 AM से 09:20 PM
शुभ – 10:46 AM से 12:13 PM
लाभ – 16:32 AM से 17:59 PM
कैसे करें कन्या पूजन:
कन्या पूजन कोई घर पर तो कोई मंदिर में जाकर करता है।
शास्त्रों के अनुसार 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं को कंजक पूजा के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
कन्या पूजन में एक बालक का होना भी जरूरी माना जाता है।
कन्या पूजन वाले दिन सबसे पहले माता अम्बे की विधि विधान पूजा कर लें।
इसके बाद कन्याओं और बालक के साफ जल से पैर धोएं।
फिर कन्याओं और बालक को विराजने के लिए आसन दें।
फिर मां दुर्गा के समक्ष दीपक प्रज्वलित करें और सभी कन्याओं और एक बालक को तिलक लगाएं और हाथ में कलावा बांधें।
इसके बाद बालक और कन्याओं को भोजन परोसें।
भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा या उपहार दें।
फिर सभी कन्याओं के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हें सम्मान के साथ विदा करें।
मां महागौरी की आरती:
जय महागौरी जगत की माया ।
जय उमा भवानी जय महामाया ॥
हरिद्वार कनखल के पासा ।
महागौरी तेरा वहा निवास ॥
चंदेर्काली और ममता अम्बे
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे ॥
भीमा देवी विमला माता
कोशकी देवी जग विखियाता ॥
हिमाचल के घर गोरी रूप तेरा
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ॥
सती ‘सत’ हवं कुंड मै था जलाया
उसी धुएं ने रूप काली बनाया ॥
बना धर्म सिंह जो सवारी मै आया
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया ॥
तभी मां ने महागौरी नाम पाया
शरण आने वाले का संकट मिटाया ॥
शनिवार को तेरी पूजा जो करता
माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता ॥
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।
महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो ॥
पूजा स्थान पर हवन कुड को रखें। अब सभी हवन सामग्री को एक पात्र में अच्छे से मिला लें। सूखी लकड़ियों को हवन कुंड में रखकर कर्पूर की मदद से अग्नि प्रज्वलित करें। अपने सिर पर रुमाल या तौलिया रख लें। अब मंत्रोच्चार करते हुए हवन सामग्री की क्रमश: आहुति दें। हवन के मंत्र नीचे दिए गए हैं।
हवन मंत्र
ओम आग्नेय नम: स्वाहा
ओम गणेशाय नम: स्वाहा
ओम गौरियाय नम: स्वाहा
ओम नवग्रहाय नम: स्वाहा
ओम दुर्गाय नम: स्वाहा
ओम महाकालिकाय नम: स्वाहा
ओम हनुमते नम: स्वाहा
ओम भैरवाय नम: स्वाहा
ओम कुल देवताय नम: स्वाहा
ओम स्थान देवताय नम: स्वाहा
ओम ब्रह्माय नम: स्वाहा
ओम विष्णुवे नम: स्वाहा
ओम शिवाय नम: स्वाहा
ओम जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा।
ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
नवरात्रि 2021 हवन विधि
पूजा स्थान पर हवन कुड को रखें। अब सभी हवन सामग्री को एक पात्र में अच्छे से मिला लें। सूखी लकड़ियों को हवन कुंड में रखकर कर्पूर की मदद से अग्नि प्रज्वलित करें। अपने सिर पर रुमाल या तौलिया रख लें। अब मंत्रोच्चार करते हुए हवन सामग्री की क्रमश: आहुति दें। हवन के मंत्र नीचे दिए गए हैं।
हवन मंत्र
ओम आग्नेय नम: स्वाहा
ओम गणेशाय नम: स्वाहा
ओम गौरियाय नम: स्वाहा
ओम नवग्रहाय नम: स्वाहा
ओम दुर्गाय नम: स्वाहा
ओम महाकालिकाय नम: स्वाहा
ओम हनुमते नम: स्वाहा
ओम भैरवाय नम: स्वाहा
ओम कुल देवताय नम: स्वाहा
ओम स्थान देवताय नम: स्वाहा
ओम ब्रह्माय नम: स्वाहा
ओम विष्णुवे नम: स्वाहा
ओम शिवाय नम: स्वाहा
ओम जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा।
ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
इसके पश्चात सूखे नारियल में लाल वस्त्र या कलावा बाधें। पान, सुपारी, लौंग, बतासा, पूरी, खीर आदि उसके शीर्ष पर स्थापित करें। फिर उसको हवन कुंड में बीचोबीच रखें। अब जो भी हवन सामग्री बची है, उसे इस मंत्र के साथ एक बार में आहुति दें। ओम पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।
अब अंत में मां दुर्गा को दक्षिणा दें, अपने सामर्थ्य के अनुरुप रुपए आदि वहां रख दें। अंत में मां दुर्गा की आरती और मां महागौरी की आरती करें। इस तरह से दुर्गा अष्टमी और महानवमी का हवन पूर्ण होता है।
एक गोला या सूखा नारियल, लाल रंग का कपड़ा या कलावा, एक हवन कुंड और सूखी लकड़ियां, तना और पत्ता, बेल, नीम, पीपल का तना और छाल, अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलैठी की जड़, चंदन की लकड़ी, गूलर की छाल और पलाश शामिल हैं। इनके अतिरिक्त काला तिल, कर्पूर, चावल, गाय का घी, लौंग, लोभान, इलायची, गुग्गल, जौ और शक्कर।
मां दुर्गा की आठवीं शक्ति हैं महागौरी
महागौरी को एक सौम्य देवी माना गया है। महागौरी को मां दुर्गा की आठवीं शक्ति भी कहा गया है। महागौरी की चार भुजाएं हैं और ये वृषभ की सवारी करती हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल हैं। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है।
ज्योतिषय महत्व
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मां महागौरी का संबंध शुक्र ग्रह से है। इनकी पूजा अर्चना करने से कुंडली में शुक्र कि स्थिति मजबूत होती है।
महागौरी का स्रोत पाठ
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
माँ महागौरी की पूजा करने से भक्तों की झोली भर जाती है
एक कथा के अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था।देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं जिससे देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं जिसकी वजह से इनका नाम गौरी पड़ गया था।
नवरात्रे के आठवे दिन माँ महागौरी की पूजा की जाती है।माता की विशेषता है कि माँ महागौरी भक्तों की झोली कभी खाली नहीं रखती है। जिन लोगों के संतान नहीं है माँ खास उनको संतान सुख का आशीर्वाद देती हैं और ऐसी तकदीर भी बना देती हैं जिसको कोई नहीं बना पाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि माँ महागौरी की पूजा करने से और ध्यान लगाने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
अष्टमी पूजा का महत्व
ऐसी मान्यता है कि नवरात्र पर अष्टमी पूजा करना बेहद शुभ होता है।
इस दौरान मां महागौरी के स्वरूप में जागृति होती है।
माता महागौरी के मंत्र व हवन के माध्यम से उनसे सुख समृद्धि, मान-सम्मान व आरोग्य रहने का आशीर्वाद मांगा जा सकतता है
विधिपूर्वक मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है व कष्टों का भी निवारण होता है।
मां महागौरी की आरती
जय महागौरी जगत की माया।
जया उमा भवानी जय महामाया।
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहां निवासा।
चंद्रकली और ममता अम्बे।
जय शक्ति जय जय मां जगदम्बे।
भीमा देवी विमला माता।
कौशिकी देवी जग विख्याता।
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा।
सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया।।
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया।
तभी मां ने महागौरी नाम पाया।
शरण आनेवाले का संकट मिटाया।
शनिवार को तेरी पूजा जो करता।
मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता।
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।
महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो।
अष्टमी के दिन मां अंबे के महागौरी स्वरूप की पूजा होती है। इस दिन कई लोग अपने घरों में हवन करते हैं। कहते हैं माता के इस स्वरूप की पूजा से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
नवरात्रि में कन्या पूजन के समय नौ कन्याओं के साथ एक बालक की पूजा अवश्य की जाती है। बालक को हनुमान का रूप मानकर उसकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जैसे दुर्गा की पूजा भैरव के बिना अधूरी है वैसे ही कन्या पूजन एक बालक के बिना अधूरी है।
मान्यता है कि कन्या पूजन में 2 वर्ष से ऊपर और 10 वर्ष के उम्र तक की कन्याओं का पूजन करना चाहिए। कन्या पूजन में नौ कन्याओं को शामिल किया जाता है। ये कन्याएं माता के नौ रूपों का प्रतीक मानी जातीं हैं।
अष्टमी के दिन चार वर्ष की कन्या की पूजा से परिवार का कल्याण होता है क्योंकि ऐसी कन्या कल्याणी मानी जाती है। वहीं पांच वर्ष की कन्या रोहिणी मानी जाती है जिसके पूजन से परिवार स्वस्थ रहता है, ऐसी मान्यता है।
* या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
* या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
* या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
* या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
* या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
* या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
* या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
पूजा के मुहूर्त : अमृत काल- 03:23 AM से 04:56 AM
ब्रह्म मुहूर्त– 04:48 AM से 05:36 AM तक है।
दिन का चौघड़िया :
लाभ – 06:26 AM से 07:53 PM तक।
अमृत – 07:53 AM से 09:20 PM तक।
शुभ – 10:46 AM से 12:13 PM तक।
लाभ – 16:32 AM से 17:59 PM तक।
ग्रह-नक्षत्रों की गणना के आधार पर ये दिन 4 राशियों के लोगों के लिए खास होने वाला है। इन लोगों पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा रहने के योग बन रहे हैं। (पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
नवरात्र के आठवें दिन देवी महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। कहा जाता है इस दिन माँ के इस रूप की आराधना करने से राहु ग्रह दोष से मुक्ति मिल जाती है। माता के इस स्वरुप को मुख्य रूप से राहु ग्रह का नियंत्रण प्राप्त है।
मान्यता है महागौरी देवी की पूजा से इंसान के सभी पाप धुल जाते हैं। अटके हुए काम फिर से बनने लगते हैं। लाइफ में आ रही सभी दिक्कतें खत्म हो जाती हैं।
सुबह जल्दी उठकर स्नान कर के पूजा की शुरुआत करें।
महागौरी देवी का मन में ध्यान करें और उनके सामने दीपक जलाएं।
इनकी पूजा में सफ़ेद या पीले रंग के फूल का उपयोग अवश्य करें।
महागौरी देवी को भोग के तौर पर नारियल, हलवा, पूड़ी और सब्जी इत्यादि अर्पित करें।
पूजा के बाद मां महागौरी की आरती करें।