नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि (Maa Kaalratri Puja Vidhi) की पूजा का विधान है। माता का यह रूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है। तंत्र क्रिया की साधना करने वालों के लिए ये दिन अति महत्वपूर्ण होता है। नवरात्रि की सप्तमी को तंत्र साधना करने वाले साधक रात के समय देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में भयानक है। माना जाता है कि मां का ये भयानक रूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है, लेकिन अपने भक्तों के लिए मां का हृदय अत्यंत ही कोमल है। जानें मां के इस रूप का महत्व, पूजा विधि, मंत्र, कथा और आरती…
मां कालरात्रि की कथा (Maa Kalraatri Ki Katha In Hindi, Nisha Puja vidhi in hindi) :
कथा के अनुसार एक बार तीनों लोकों में शुम्भ निशुम्भ और रक्तबीज तीनों राक्षसों ने आतंक मचा रखा था। इससे परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास इस समस्या के समाधान के लिए पहुंचे। तब भगवान शिव ने मां आदिशक्ति से उन तीनों का संहार करके अपने भक्तों को रक्षा के लिए कहा। इसके बाद माता पार्वती ने उन दुष्टों के संहार के लिए मां दुर्गा का रूप धारण कर लिया। मां ने शुम्भ और निशुम्भ से युद्ध करके उनका अंत कर दिया। लेकिन जैसे ही मां ने रक्तबीज पर प्रहार किया उसके रक्त से अनेकों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर मां दुर्गा ने कालरात्रि का रूप धारण कर लिया। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज पर प्रहार करना शुरु कर दिया और उसके रक्त को अपने मुंह में भर लिया और रक्तबीज का गला काट दिया। मां का शरीर रात से भी ज्यादा काला है। देवी कालरात्रि के बाल बिखरे हुए हैं और मां के गले में नर मुंडों की माला विराजित है। मां के चार हाथ हैं जिनमें से एक हाथ में कटार और दूसरे में लोहे का कांटा है। देवी के तीन नेत्र हैं और इनकी सांस से अग्नि निकलती है। मां का वाहन गधा है।
Highlights
नवरात्रि में मां शक्ति के 7वें रूप को कालरात्रि (Kalraatri) कहा जाता है। ये मां दुर्गा का सबसे रौद्र स्वरूप कहा जाता है। सप्तमी तिथि में मध्य रात्रि के समय मां का महास्नान होता है। इसके बाद रात में ही निशा पूजन (Nisha Puja) किया जाता है। पूजा की शुरुआत 12 बजे रात होती है। इसमें मां का विधि विधान से पूजन किया जाता है। कई जगहों पर ये भी मान्यता है कि इसी पूजा के पश्चात बलि दी जाती है। कहते हैं कि इस पूजा को देखने मात्र से मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
नवरात्रि पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। मां दुर्गा के इस स्वरूप को कालरात्रि इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनका रंग कृष्ण वर्ण यानी काले रंग का है। इस स्वरूप को देवी दुर्गा का रौद्र रूप भी कहा जाता है। इसके अलावा मान्यता है कि देवी जितनी रौद्र हैं उतनी ही आसानी से वर भी प्रदान करती हैं। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनको शुभंकरी भी कहा जाता है।
कालरात्रि का स्वरूप जितना रौद्र है, उतनी है ममतमयी भी हैं। वो शुभ फलदायी हैं। इसी कारण उनका नाम शुभंकारी भी है। इनकी आराधना करने वाले को कभी भूत, प्रेत, असुरों इत्यादि से भय नहीं होता। इसके अलावा दरिद्रता भी दूर होती है।
- ॐ कालरात्र्यै नम:
- ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ
- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा
- या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
- ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
नवरात्रि में मां दुर्गा के सातवें स्वरूप यानी देवी कालरात्रि को रौद्र स्वरूप भी कहते हैं। इसमें मां का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है। मां की सांसों से भी अग्नि निकलती है। बाल बिखरे हुए हैं इनके गले में पहनी माला भी बिजली की भांति चमकती है। इनके इस स्वरूप से संसार की सभी आसुरी शक्तियां ही नहीं देवता गण भी भय से कांप उठे थे। इनके इस स्वरूप को विनाश करने वाला बताया गया है।
मां कालरात्रि देखने में अत्यंत भयानक है। लेकिन अपने भक्तों पर ये विशेष कृपा बनाती है और पापियों का नाश करती हैं। मां के गले में नरमुंडों की माला है। मां कालरात्रि के तीन नेत्र है। जो पूरी तरह से गोल हैं और उनका रंग काला है। इनके बाल खुले हुए हैं। सवारी इनकी गदर्भ है। दाहिने हाथ से ये अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हुए हैं और नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। मां के बायीं तरफ के ऊपरी हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है। मां के इस स्वरूप की उपासना से सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥
आज रात में ही निशा पूजा, संधि पूजा का आयोजन देशभर के दुर्गा पंडालों और मंदिरों में होगा। सप्तमी के स्वरूप को मां कालरात्रि कहा जाता है। मां का ये स्वरूप बेहद रौद्र माना गया है। नवरात्रि के सातवें दिन तो मां कालरात्रि की होती है लेकिन सप्तमी और अष्टमी तिथि के मिलन पर मां दुर्गा की संधि पूजा होती है। निशा पूजा के दौरान मां शृंगार, हवन, श्रीयंत्रम् आदि की पूजा होती है। इसके अलावा मां को 56 भोग का प्रसाद चढ़ाया जाता है। निशा पूजा के प्रसाद का खास महत्व माना गया है। इस दौरान मां के रौद्र रूप का बखान और कथा सुनने का विधान कहा गया है।
मां कालरात्रि की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में की जाती है। तांत्रिक क्रिया से साधना करने वाले इनकी पूजा रात के समय करते हैं। मां की पूजा के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। इस दिन मां कालरात्रि को कुमकुम, लाल फूल, रोली चढ़ाएं। माला के रूप में मां को नीबूओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जलाकर उनकी अराधना करें। इसके बाद माता की कथा पढ़ें या सुने और अंत में उनकी आरती उतार कर उनको भोग लगाएं। मां से जाने अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगें।