Marriage Prediction: जन्म कुंडली में सप्तम भाव विवाह का कारक माना जाता है। इस भाव में विवाह से जुड़ी जानकारियां प्राप्त की जाती है। ज्योतिष शास्त्र अनुसार कुंडली के सप्तम भाव में मंगल, शनि, सूर्य, राहू और केतु की उपस्थिति अच्छी नहीं मानी गई है। जब कुंडली के सातवें भाव में चंद्र या शुक्र के साथ मंगल और शनि विराजमान होते हैं, तो विवाह में अड़चन आती है। इस भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति की शादी सामान्य आयु से देरी से होती है।
यदि सप्तम भाव में शनि नीच राशि मे स्थित हो तब शादी ज्यादा उम्र के व्यक्ति से होने की संभावनाएं रहती हैं। वहीं शनि के साथ सूर्य की युति इस भाव में होने पर विवाह तो देर से होता ही है साथ ही कलह से घर अशांत भी रहता है।
कुंडली के सप्तम भाव में शनि की युति चन्द्रमा के साथ होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति ईमानदार नहीं रहता और उसके अन्य प्रेम संबंध स्थापित होने की संभावनाएं रहती हैं। सप्तम शनि और उससे युति बनाने वाले ग्रह विवाह लिए सुखकारक नहीं होते हैं। शनि और चन्द्र की युति होने पर शादी 30 वर्ष की आयु के बाद ही करने की सलाह दी जाती है।
शनि जिनकी कुंडली में छठे भाव में एवं सूर्य आठवें भाव में और सप्तमेश कमजोर होता है, तो ऐसे व्यक्ति के विवाह में भी काफी बाधाएँ आती हैं। शनि और राहु की युति सप्तम भाव में होने से भी विवाह अधिक आयु में होता है। शनि और राहु की युति लग्न में होने पर भी ये स्थिति बनती है।
क्या करें उपाय? जिन लड़कियों के विवाह में शनि के कारण देरी हो रही हो उन्हें हरितालिका व्रत रखना चाहिए। हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी खिलाना भी लाभकारी माना गया है। विवाह संबंधी परेशानियों से निपटने के लिए 16 सोमवार का व्रत काफी फलदायी माना गया है। मान्यता है कि शिव की कृपा से विवाह शीघ्र ही हो जाता है। कुंडली के सप्तम भाव में शनि होने पर शनि के उपाय करें। जिसके लिए आप शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करें।
विवाह की बाधा को दूर करने के लिए देवी मंगला का पूजन करें। माता गौरी का यह स्वरूप सिंदूरी आभा लिए हुए है। देवी मंगला गौरी की पूजा से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
