Maha Shivratri (Mahashivratri) 2020: महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसके लिए शिव भक्त शिवालयों या घर पर ही शिव का जलाभिषेक करते हैं। शिव को तरह तरह की सामग्री अर्पित की जाती है। लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें चढ़ाने से शिव शंकर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। आइए जानते हैं वो कौन सी 11 चीजें हैं जो शिव को अति प्रिय हैं और जिनका इस्तेमाल पूजा के समय जरूर करना चाहिए…

Maha Shivratri 2020 Puja Vidhi, Muhurat, Mantra: महाशिवरात्रि पर जानिए कैसे करें भगवान शिव की पूजा और क्या सामग्रियां हैं जरूरी

जल: शिव पुराण में इस बात का वर्णन है कि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं शिव पर जल चढ़ाने का महत्व समुद्र मंथन से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने सभी की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था। जिससे शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना गया है।

आंकड़ा: शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि शिव पूजा में एक आंकड़े का फूल चढ़ाना सोने के दान के बराबर फलदायी होता है।

बिल्वपत्र: भगवान के तीन नेत्रों का प्रतीक माना जाता है बिल्वपत्र। जो शिव को अति प्रिय है। तीन पत्तियों वाले इस बिल्वपत्र का शिव पूजन में प्रथम स्थान है। ऋषियों ने कहा है कि बिल्वपत्र महादेव को चढ़ाना मतलब 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल प्राप्त होना एक समान है।

धतूरा: भगवान शिव को धतूरा चढ़ाने के पीछे जहां धार्मिक कारण है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। जैसा कि भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत माना गया है। यह काफी ठंडा क्षेत्र है जहां ऐसे आहार और औषधि की जरुरत होती है जो शरीर को ऊष्मा प्रदान कर सकें। वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लेने से ये औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है। जबकि धार्मिक मान्यताओं अनुसार देवी भागवत‍ पुराण में बताया गया है। शिव जी ने जब सागर मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की।

भांग: महादेव हमेशा ध्यानमग्न मुद्रा में रहते हैं। भांग ध्यान केंद्रित करने में मददगार होती है। समुद्र मंथन में निकले विष का सेवन करने के बाद महादेव को औषधि स्वरूप भांग दी गई। लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात
किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है। भगवान शिव संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं।

कर्पूर: शिव की आरती कर्पूर जलाकर की जाती है। भगवान शिव का प्रिय मंत्र है कर्पूरगौरं करूणावतारं…. यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल है।

दूध: शिव के शरीर में विष के अनिष्टकारी प्रभाव को कम करने के लिए उन्हें दूध चढ़ाया गया था। यही कारण है कि शिवलिंग पर दूध जरूर चढ़ाया जाता है।

चावल: चावल यानी अक्षत का प्रयोग बहुत से पूजा पाठ के कार्यों में किया जाता है। लेकिन ध्यान रखें कि चावल टूटा नहीं होना चाहिए। क्योंकि अक्षत का मतलब ही पूर्ण होता है जिसके पूजा में चढ़ाने से किसी चीज की कमी नहीं रह जाती। अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती।

चंदन: भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं। चंदन का प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है। शिव जी को चंदन चढ़ाने से समाज में मान सम्मान यश बढ़ता है।

भस्म: भगवान शिव ने भस्म को पवित्र माना है। कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। एक कथा के अनुसार शिव की पत्नी सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया तो क्रोधित शिव ने उनकी भस्म को उनकी आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया। शिव के अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रह जाता। उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं।

रुद्राक्ष: कहा जाता है कि भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा एक बार पार्वती जी से कही थी। एक समय भगवान शिवजी एक हजार वर्ष के लिए समाधि में चले गए थे। समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब उन्होंने अपनी आंखे खोली। तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुई।