Maharishi Valmiki Jayanti 2019, Date and History: महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था जिसे शरद पूर्णिमा के अन्य नाम से भी जाना जाता है। इस साल वाल्मीकि जयंती अंग्रेजी तारीख के मुताबिक 13 अक्टूबर (रविवार) को है। महर्षि वाल्मीकि की गिनती प्राचीन काल के महानतम ऋषियों में होती है। पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इन्हों ने अपनी कठिन तपस्या के बल पर महर्षि की उपाधि प्राप्त की थी। इन्हें आदि कवि भी कहा गया है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य को दुनिया का सबसे प्राचीन काव्य का दर्जा प्राप्त है। परंतु, आखिर क्या कारण था कि महर्षि वाल्मीकि को रामायण महाकाव्य की रचना करनी पड़ी? आगे इसे जानते हैं।
रामायण के मुताबिक एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के किनारे गए। यहां उन्होंने आपस में प्यार करते हुए एक क्रौंच (सारस) पक्षी के एक जोड़े को देखा। जब क्रौंच पक्षी का जोड़ा प्रेम आलाप कर रहा था तब उसी वक्त एक शिकारी ने नर पक्षी पर वार किया और उसे मार डाला। जिससे मादा पक्षी विलाप करने लगी। यह देखकर महर्षि वाल्मीकि बहुत क्रोधित हुए जिससे उनके मुंह से अचानक ही एक श्लोक (मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।) निकल पड़ा। जब वाल्मीकि अपने आश्रम पहुंचे तो उस वक्त भी उनका ध्यान अचानक निकले उस मंत्र पर था। तभी वाल्मीकि जी की कुटिया में ब्रह्मा जी आए और उन्होंने कहा- “आपके मुंह से जो वाक्य निकला है वह श्लोक ही है। मेरे प्रेरणा से ही अपने मुंह से ऐसा वाक्य निकला है। इसलिए आप श्लोक रूप में श्रीराम के चरित्र का वर्णन कीजिए। ” इस प्रकार ब्रह्मा जी के आदेश से प्रेरित होकर महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि के बचपन का नाम रत्नाकर था। बचपन में उन्हें एक भील ने पकड़कर ले गया और अपने यहां उनका पालन-पोषण करने लगा। रत्नाकर जब बड़ा हुआ तो वह भी भील समाज में चल रही प्रथा के मुताबिक जीवनयापन के लिए लूटपाट काटने लगा। एक दिन अचानक नारद जी को भी वह बंधक बना लिया। बाद में नारद जी की प्रेरणा से लूटपाट का काम छोड़कर तपस्या करने लगे। वर्षों तक तपस्या करने के बाद उन्हें आत्मबोध हुआ और बाद में चलकर संस्कृत में रामायण की रचना की। जिसे आज भी वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है।