Ganga Saptami 2020: गंगा हस्तिनापुर के महाराज शांतनु की पत्नी थीं। महाभारत (Mahabharat) में दोनों के प्रेम प्रसंग का उल्लेख मिलता है। भीष्म इन दोनों की आठवीं संतान थे जिनका नाम देवव्रत था। कहा जाता है कि माता गंगा ने अपनी बाकी 7 संतानों को जीवित ही नदी में प्रवाहित कर दिया था। लेकिन गंगा ने ऐसा क्यों किया इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है…

श्रापित थे देवी गंगा के आठ पुत्र: पौराणिक कथाओं अनुसार एक बार पृथु पुत्र जिन्हें वसु कहा जाता था वो अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर घूम रहे थे। जहां वशिष्ठ ऋषि का आश्रम था। वहीं नंदिनी नाम की गाय थी। घो वसु ने अन्य सभी वसुओं के साथ मिलकर उस गाय का हरण कर लिया। जिस पर महर्षि वशिष्ठ काफी क्रोधित हुए उन्होंने सभी वसुओं को मानव योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। वसुओं ने तुरंत अपने पाप की क्षमा मांग ली जिस पर ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जायेगी लेकिन घौ नामक वसु को पृथ्वीलोक पर लंबे समय तक रहकर अरने कर्म भोगने होंगे। ऋषि द्वारा दिये गये श्राप की बात वसुओं ने देवी गंगा को बताई जिस पर गंगा ने कहा कि मैं तुम सभी को अपने गर्भ में धारण करूंगी और तुरंत ही मनुष्य योनि से मुक्त भी कर दूंगी। गंगा ने ऐसा ही किया जिस पर सांतनु को दखल देने के लिए गंगा ने पहले ही मना कर दिया था। लेकिन जब इनकी आठवीं संतान की बारी आई तब महाराज सांतनु ने गंगा को ऐसा करने से रोक दिया तब गंगा ने अपने इस पुत्र को जीवित रखा जो भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मां गंगा के इस पुत्र को पृथ्वी पर रहकर जीवन भर दुख भोगने पड़े।

25 सालों बाद गंगा अपने पुत्र को लेकर वापस आईं: गंगा ने अपने पति शांतनु के सामने शर्त रखी थी कि अगर जीवन में राजा शांतनु ने उन्हें किसी भी काम में टोका तो वह तुरंत उन्हें छोड़ देंगी। 7 पुत्रों को बहा देने के बाद शांतनु ने अपने आठवें पुत्र को बहाने से गंगा को रोक लिया। जिसके बाद गंगा शांतनु को छोड़ अपने आठवें पुत्र को लेकर चली गईं। फिर करीब 25 सालों बाद गंगा ने अपने पुत्र देवव्रत को शांतनु को सौंप दिया। यही देवव्रत बाद में भीष्म कहलाए।